खुसरो की रचनाएँ – Amir Khusro Poetry in Hindi
खुसरो की रचनाएँ – Amir Khusro Poetry in Hindi paheliyan dohe ghazal mukriyan poem
- खुसरो की रचनाएँ
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■ पहेलियाँ – amir khusro ki paheliyan in hindi with answer puzzles
- एक गुनी ने ये गुन कीना, हरियल पिंजरे में दे दीना।
देखो जादूगर का कमाल, डारे हरा निकाले लाल।।
उत्तर—पान - एक परख है सुंदर मूरत, जो देखे वो उसी की सूरत।
फिक्र पहेली पायी ना, बोझन लागा आयी ना।।
उत्तर—आईना - बाला था जब सबको भाया, बड़ा हुआ कुछ काम न आया।
खुसरो कह दिया उसका नाँव, अर्थ कहो नहीं छाड़ो गाँव।।
उत्तर—दिया - घूम घुमेला लहँगा पहिने,
एक पाँव से रहे खड़ी
आठ हात हैं उस नारी के,
सूरत उसकी लगे परी ।
सब कोई उसकी चाह करे है,
मुसलमान हिन्दू छत्री ।
खुसरो ने यह कही पहेली,
दिल में अपने सोच जरी ।
उत्तर – छतरी - खडा भी लोटा पडा पडा भी लोटा।
है बैठा और कहे हैं लोटा।
खुसरो कहे समझ का टोटा॥
– लोटा - घूस घुमेला लहँगा पहिने, एक पाँव से रहे खडी।
आठ हाथ हैं उस नारी के, सूरत उसकी लगे परी।
सब कोई उसकी चाह करे, मुसलमान, हिंदू छतरी।
खुसरो ने यही कही पहेली, दिल में अपने सोच जरी।
– छतरी - आदि कटे से सबको पारे। मध्य कटे से सबको मारे।
अन्त कटे से सबको मीठा। खुसरो वाको ऑंखो दीठा॥
– काजल
- एक थाल मोती से भरा। सबके सिर पर औंधा धरा।
चारों ओर वह थाली फिरे। मोती उससे एक न गिरे॥
– आकाश - एक नार ने अचरज किया। साँप मार पिंजरे में दिया।
ज्यों-ज्यों साँप ताल को खाए। सूखै ताल साँप मरि जाए॥
– दीये की बत्ती - एक नारि के हैं दो बालक, दोनों एकहिं रंग।
एक फिरे एक ठाढ रहे, फिर भी दोनों संग॥
– चक्की - खेत में उपजे सब कोई खाय।
घर में होवे घर खा जाय॥
– फूट - गोल मटोल और छोटा-मोटा,
हर दम वह तो जमीं पर लोटा।
खुसरो कहे नहीं है झूठा,
जो न बूझे अकिल का खोटा।।
उत्तर – लोटा। - श्याम बरन और दाँत अनेक, लचकत जैसे नारी।
दोनों हाथ से खुसरो खींचे और कहे तू आ री।।
उत्तर – आरी - हाड़ की देही उज् रंग, लिपटा रहे नारी के संग।
चोरी की ना खून किया वाका सर क्यों काट लिया।
उत्तर – नाखून। - बाला था जब सबको भाया, बड़ा हुआ कुछ काम न आया।
खुसरो कह दिया उसका नाव, अर्थ करो नहीं छोड़ो गाँव।।
उत्तर – दिया।
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■मुकरियाँ amir khusro mukerian with meaning
- अर्ध निशा वह आया भौन
सुंदरता बरने कवि कौन
निरखत ही मन भयो अनंद
ऐ सखि साजन? ना सखि चंद! - शोभा सदा बढ़ावन हारा
आँखिन से छिन होत न न्यारा
आठ पहर मेरो मनरंजन
ऐ सखि साजन? ना सखि अंजन! - जीवन सब जग जासों कहै
वा बिनु नेक न धीरज रहै
हरै छिनक में हिय की पीर
ऐ सखि साजन? ना सखि नीर! - बिन आये सबहीं सुख भूले
आये ते अँग-अँग सब फूले
सीरी भई लगावत छाती
ऐ सखि साजन? ना सखि पाती! - सगरी रैन छतियां पर राख
रूप रंग सब वा का चाख
भोर भई जब दिया उतार
ऐ सखि साजन? ना सखि हार! - पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो
जब उतरयो तो पसीनो आयो
सहम गई नहीं सकी पुकार
ऐ सखि साजन? ना सखि बुखार! - सेज पड़ी मोरे आंखों आए
डाल सेज मोहे मजा दिखाए
किस से कहूं अब मजा में अपना
ऐ सखि साजन? ना सखि सपना! - बखत बखत मोए वा की आस
रात दिना ऊ रहत मो पास
मेरे मन को सब करत है काम
ऐ सखि साजन? ना सखि राम!
- सरब सलोना सब गुन नीका
वा बिन सब जग लागे फीका
वा के सर पर होवे कोन
ऐ सखि ‘साजन’ना सखि! लोन(नमक) - सगरी रैन मिही संग जागा
भोर भई तब बिछुड़न लागा
उसके बिछुड़त फाटे हिया’
ए सखि ‘साजन’ ना, सखि! दिया(दीपक) - राह चलत मोरा अंचरा गहे।
मेरी सुने न अपनी कहे
ना कुछ मोसे झगडा-टंटा
ऐ सखि साजन ना सखि कांटा!
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■ दो सुखने amir khusro sukhane
- गोश्त क्यों न खाया?
डोम क्यों न गाया?
उत्तर—गला न था - जूता पहना नहीं
समोसा खाया नहीं
उत्तर— तला न था - अनार क्यों न चखा?
वज़ीर क्यों न रखा?
उत्तर— दाना न था( अनार का दाना और दाना=बुद्धिमान) - सौदागर चे मे बायद? (सौदागर को क्या चाहिए )
बूचे(बहरे) को क्या चाहिए?
उत्तर (दो कान भी, दुकान भी) - तिश्नारा चे मे बायद? (प्यासे को क्या चाहिए)
मिलाप को क्या चाहिए
उत्तर—चाह (कुआँ भी और प्यार भी) - शिकार ब चे मे बायद करद? ( शिकार किस चीज़ से करना चाहिए)
क़ुव्वते मग़्ज़ को क्या चाहिए? (दिमाग़ी ताक़त को बढ़ाने के लिए क्या चाहिए)
उत्तर— बा —दाम (जाल के साथ) और बादाम - रोटी जली क्यों? घोडा अडा क्यों? पान सडा क्यों ?
उत्तर— फेरा न था - पंडित प्यासा क्यों? गधा उदास क्यों ?
उत्तर— लोटा न था
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■ढकोसले
- खीर पकाई जतन से और चरखा दिया जलाय।
आयो कुत्तो खा गयो, तू बैठी ढोल बजाय, ला पानी पिलाय। - भैंस चढ़ी बबूल पर और लपलप गूलर खाय।
दुम उठा के देखा तो पूरनमासी के तीन दिन।। - पीपल पकी पपेलियाँ, झड़ झड़ पड़े हैं बेर।
सर में लगा खटाक से, वाह रे तेरी मिठास।। - लखु आवे लखु जावे, बड़ो कर धम्मकला।
पीपर तन की न मानूँ बरतन धधरया, बड़ो कर धम्मकला।। - भैंस चढ़ी बबूल पर और लप लप गूलर खाए।
उतर उतर परमेश्वरी तेरा मठा सिरानों जाए।।
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■ दोहे – amir khusro dohe
- खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूँ पी के संग।
जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग।। - चकवा चकवी दो जने इन मत मारो कोय।
ये मारे करतार के रैन बिछोया होय।। - उज्जवल बरन अधीन तन एक चित्त दो ध्यान।
देखन में तो साधु लगे निपट पाप की खान।। - श्याम सेत गोरी लिए जनमत भई अनीत।
एक पल में फिर जात है जोगी काके मीत।। - पंखा होकर मैं डुली, साती तेरा चाव।
मुझ जलती का जनम गयो तेरे लेखन भाव।। - नदी किनारे मैं खड़ी सो पानी झिलमिल होय।
पी गोरी मैं साँवरी अब किस विध मिलना होय।। - साजन ये मत जानियो तोहे बिछड़त मोहे को चैन।
दिया जलत है रात में और जिया जलत बिन रैन।। - रैन बिना जग दुखी और दुखी चन्द्र बिन रैन।
तुम बिन साजन मैं दुखी और दुखी दरस बिन नैंन।। - अंगना तो परबत भयो, देहरी भई विदेस।
जा बाबुल घर आपने, मैं चली पिया के देस।। - आ साजन मोरे नयनन में, तोहे पलक ढाप दूँ।
न मैं देखूँ और न को, न तोहे देखन दूँ। - अपनी छवि बनाई के मैं तो पी के पास गई।
जब छवि देखी पीव की सो अपनी भूल गई।। - खुसरो पाती प्रेम की बिरला बाँचे कोय।
वेद, कुरान, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय।। - संतों की निंदा करे, रखे पर नारी से हेत।
वे नर ऐसे जाऐंगे, जैसे रणरेही का खेत।। - खुसरो सरीर सराय है क्यों सोवे सुख चैन।
कूच नगारा सांस का, बाजत है दिन रैन।।
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■ ग़ज़ल – amir khusro ghazal
- ज़िहाल-ए मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल,
दुराये नैना बनाये बतियां |
कि ताब-ए-हिजरां नदारम ऎ जान,
न लेहो काहे लगाये छतियां || - शबां-ए-हिजरां दरज़ चूं ज़ुल्फ़
वा रोज़-ए-वस्लत चो उम्र कोताह,
सखि पिया को जो मैं न देखूं
तो कैसे काटूं अंधेरी रतियां || - यकायक अज़ दिल, दो चश्म-ए-जादू
ब सद फ़रेबम बाबुर्द तस्कीं,
किसे पडी है जो जा सुनावे
पियारे पी को हमारी बतियां || - चो शमा सोज़ान, चो ज़र्रा हैरान
हमेशा गिरयान, बे इश्क आं मेह |
न नींद नैना, ना अंग चैना,
ना आप आवें, न भेजें पतियां || - बहक्क-ए-रोज़े, विसाल-ए-दिलबर
कि दाद मारा, गरीब खुसरौ |
सपेत मन के, वराये राखूं
जो जाये पांव, पिया की घतियां ||
- :- मेरी बदहाली से क्यों तुम बेखबर रहते हो यार क्यों चुराते हो नज़र और क्यों बात बनाते हो। अब मैं ओर जुड़े नही सह सकता मेरी जान अपनी छाती से क्यों नही लगा लेते।जुदाई की रातें तो ज़ुल्फों से भी घनी और लम्बी हैं दिन विसाल-ए-यार का ज़िन्दगी सा छोटा है। अगर मैं पिया को देख नही पाई तो अंधेरी रात कैसे काटूंगी। यकायक ही वो दो जादुई आँखें मेरे दिल का सुकून ले उड़ीं, लेकिन यह फुर्सत किसे है जो मेरे पिया तक मेरी बात पहुँचा दे। जलती हुई शम्मा और हैरान ज़र्रे की माफ़िक मैं इश्क में हमेशा फरियाद कर रहा हूँ। मेरे आंखों में न तो नींद है और न रात में चैन। मेरे पिया खुद आते भी नही और कोई खत भी नही भेजते।महबूब के दीदार के दिन की ख़ुशी का जिसने इतना लम्बा इंतज़ार कराया है, खुसरो, दिल का दर्द दबा के रखूंगी अगर मुझे कोई उस पिया की चालें समझा दे।
- आपको हमारी यह प्रस्तुति ( Amir Khusro Poetry in Hindi) कैसी लगी जरुर बताएँ.
- – अंशु प्रिया (Anshu priya)
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