बादल पर कविता || Badal Par Kavita – Short Poem on Clouds in Hindi :

poem on clouds in hindi – बादल पर कविता बादल पर कविता || Badal Par Kavita - Short Poem on Clouds in Hindi

बादल पर कविता || Badal Par Kavita – Short Poem on Clouds in Hindi

  • बादल पर कविता || Badal Par Kavita – Short Poem on Clouds in Hindi
  • रे मेघों

    रे मेघों! तुम कहाँ भटक गए हो?
    वो खेत भी रूठे हैं,
    वो नहर भी सूखे हैं,
    सूर्य का तेज है चरम पर,
    अकाल का प्रकोप है भयंकर।
    क्या शहरों की भीड़ में अटक गए हो?
    रे मेघों! तुम कहाँ भटक गए हो?
    फिर गरजो आके गांवों की गलियारों में,
    फिर बरसो खेतों में खलिहानों में,
    फिर मुंडेर पर पंछियों का बसेरा हो,
    फिर गोरैयों के कलरव से सवेरा हो,
    फिर मिट्टी में सुनहरे फसल लहराए,
    फिर थका हारा वो किसान मुस्कुराए।
    जीवन यहां भी तेरी प्रतीक्षा में है
    क्या राह भूल कर पलट गए हो,
    रे मेघों! तुम कहाँ भटक गए हो?
    फिर उन सुखी टहनियों में प्राण भरो,
    फिर उजड़े घोसलों को जीवंत करो,
    धरती बेजान है बरखा के वियोग में,
    अब इस प्यास का अंत करो ।
    सफर लम्बा है तेरा सब जानते हैं,
    क्या दूरियों के कारण सिमट गए हो?
    रे मेघों! कहाँ तुम भटक गए हो?
    -Jayaa Pandey

  • बादल
    अम्मा जरा देख तो ऊपर
    चले आ रहे हैं बादल
    गरज रहे हैं बरस रहे हैं
    दीख रहा है जल ही जल
    हवा चल रही क्या पुरवाई
    झूम रही है डाली डाली
    ऊपर काली घटा घिरी है
    नीचे फैली हरियाली
    भीग रहे हैं खेत बाग वन
    भीग रहे हैं घर आंगन
    बाहर निकलूँ मैं भी भीगूँ
    चाह रहा है मेरा मन
    – विष्णु दत्त पाण्डेय

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