सम्पूर्ण चाणक्य नीति हिंदी में – Chanakya Niti in Hindi Pdf Chanakya Niti Online :

Chanakya Niti in Hindi Language Font Pdf – चाणक्य नीति इन हिंदीसम्पूर्ण चाणक्य नीति हिंदी में - Chanakya Niti in Hindi Pdf Chanakya Niti Online

Chanakya Niti in Hindi font language Pdf bani

  • चाणक्य निति कहती है, व्यक्ति में यदि एक भी गुण हो, तो उसके सारे दोष छिप जाते हैं.
  • केवल सुन्दरता के आधार पर किसी स्त्री से विवाह नहीं करना चाहिए. विवाह करने से पहले उसके संस्कार,गुण-अवगुण, लक्षण आदि बातें जान लेनी चाहिए. अगर स्त्री सुंदर नहीं है लेकिन गुणी है तो उससे शादी कर लेनी चाहिए.
  • राजा, वेश्या, यमराज, अग्नि, चोर, बालक, याचक और लोगों को सताने वाले दूसरों का कष्ट नहीं समझते हैं.

  • भोजन, नींद, भय, और सन्तान की उत्पत्ति ये सारी बातें मनुष्य और पशुओं में एक जैसी होती है.
  • जो वस्तु अत्यंत दूर है, जिसकी आराधना कठिन है और जो दुर्लभ स्थान पर है ऐसी सब चीजों को तप( कठोर मेहनत ) करके हीं पाया जा सकता है, ऐसा चाणक्य निति का मत है.
  • मधुर भाषा सभी को प्रिय होती है, इसलिए हमें मीठा बोलना चाहिए.
  • महात्मा चाणक्य के अनुसार तिनका सबसे हल्का होता है, इससे भी हल्की रुई होती है. रुई से भी हल्का होता है याचक ( मांगने वाला ). हवा भी याचक को उड़ाकर इसलिए नहीं ले जाती है क्योंकि उसे डर रहता कि कहीं वह उससे भी कुछ न मांग ले.
  • सही व्यक्ति को दिया गया दान और अभयदान व्यक्ति के मर जाने के बाद भी समाप्त नहीं होता है.
  • धन-सम्पत्ति वही श्रेष्ठ होती है, जो सभी के काम आए.
  • जो मुर्ख व्यक्ति यह समझता है कि वेश्या केवल उससे हीं प्रेम करती है वह उसकी इशारों पर नाचता रहता है.
  • धन और ऐश्वर्य पाने के बाद घमंड हो हीं जाता है, मांगने से सम्मान नहीं मिलता है और दुर्गुणों से युक्त होने पर कल्याण नहीं हो सकता है.
  • चाणक्य के अनुसार प्रेम का बंधन भी अजीब होता है, लकड़ी भेदने में कुशल भौंरा कमल दल में बंद हो निष्क्रिय हो जाता है.प्रेम के कारण वह इस बंधन से मुक्त होना हीं नहीं चाहता है.
  • परदेश में जाकर व्यक्ति धन तो कमा सकता है, लेकिन इसके लिए उसे काफी कष्ट उठाने पड़ते हैं.
  • दूसरे के शरण में रहने से व्यक्ति का सम्मान घटता है.
  • चाणक्य कहते हैं कि गलत तरीके से कमाया हुआ धन केवल कुछ वर्ष तक हीं लाभ पहुंचाता है, कुछ वर्षों के बाद वह कष्ट पहुँचाने लगता है.
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  • निर्धन को सभी छोड़कर चले जाते हैं, लेकिन उसी व्यक्ति के धनवान हो जाने पर फिर सभी
    लोग वापस चले आते हैं. अर्थात इस संसार में धन से बड़ा सहयोगी कोई नहीं है.
  • गंदे कपड़े पहनने वाले, दांतों की सफाई न करने वाले, अधिक भोजन करने वाले, कठोर
    शब्द बोलने वाले, सूर्योदय और सूर्यास्त में सोने वाले व्यक्ति को लक्ष्मी त्याग देती है.
    भले हीं वह साक्षात भगवान विष्णु हीं क्यों न हों.
  • चाणक्य कहते हैं कि दुष्ट और काँटों से बचने के दो हीं तरीके होते हैं, या तो उन्हें जूतों से कुचल दिया जाए,
    या उनका त्याग कर दिया जाए.
  • मनुष्य को सही समय आने पर हीं अपनी बात बोलनी चाहिए, तभी उसकी बात को महत्व मिलता है.
  • बुद्धिमान व्यक्ति को… सिद्ध की हुई दवा को, अपने धर्माचरण को, अपने घर के दोष को,
    स्त्री के साथ सम्भोग की बात को, बेस्वाद भोजन को, और सुनी हुई बुरी बात को किसी
    को नहीं बताना चाहिए, ऐसा चाणक्य का विचार है.
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  • स्त्री को योगी शव के रूप में देखते हैं, कामी लोग कामिनी के रूप में देखते हैं और कुत्ते उसे
    मांस के लोथड़े के रूप में देखते हैं.
  • पूरे संसार को वश में वही व्यक्ति कर सकता है, जो किसी की निंदा नहीं करता हो.
  • राजा, अग्नि, गुरु, और स्त्री इनके ज्यादा पास जाने से हानि हो सकती है. लेकिन इनसे दूर रहकर

    भी लाभ नहीं पाया जा सकता है. इसलिए चाणक्य के अनुसार इनसे संतुलित व्यवहार करना चाहिए. अर्थात इनसे न

    तो ज्यादा दूरी रखनी चाहिए और न अधिक नजदीकी.

  • जिसका अहित करना चाहते हो, उससे हमेशा मीठी बात करनी चाहिए. जैसे हिरण को पकड़ने
    से पहले शिकारी मीठी आवाज में गीत गाता है.
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  • ये सब अपना विस्तार खुद कर लेते हैं…. जल में तेल, बुरे लोगों से बोली गई बुरी बात, योग्य
    व्यक्ति को दिया गया दान, बुद्धिमान का शास्त्रज्ञान.
  • बहुत से लोग मिलकर किसी भी काम को वैसे हीं कर सकते हैं, जैसे घास-फूस का छप्पर वर्षा
    की पानी से हमें बचाता है.
  • कर्म कर्ता ( कर्म करनेवाले ) के पीछे-पीछे चलता है, अर्थात अपने कर्मों का फल हमें जरुर
    भोगना पड़ता है. इसलिए हमें अच्छे कर्म करने चाहिए.
  • भविष्य में आने वाली विपत्ति और वर्तमान में उपस्थित विपत्ति को दूर करने का उपाय जो
    सोच लेता है, वह व्यक्ति सुखी रहता है. और जो सोचता है कि भाग्य में जो लिखा है वही होगा
    वह जल्दी हीं नष्ट हो जाता है, ऐसा चाणक्य निति कहती है.
  • काम, क्रोध, लोभ, स्वादिष्ट पदार्थों की इच्छा, श्रृंगार, खेल-तमाशे, अधिक सोना और चापलूसी
    करना –  चाणक्य के अनुसार हर विद्यार्थी को इन आठ दुर्गुणों को छोड़ देना चाहिए.
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  • घर-गृहस्थी में अधिक आसक्ति रखने से व्यक्ति को विद्या नहीं मिलती. जो लोग मांस खाते हैं,
    उनमें दया नहीं होती. जो धन के लोभी होते हैं, उनमें सत्य नहीं होता. भोगविलास में लगे व्यक्ति
    में पवित्रता नहीं आती.
  • चाणक्य निति के अनुसार साग से रोग अधिक बढ़ते हैं, दूध से शरीर मोटा होता है, घी से वीर्य यानि शक्ति बढ़ती है, मांस से केवल मांस बढ़ता है.

  • जिस प्रकार अनेक पक्षी रात होने पर किसी पेड़ में आश्रय ले लेते हैं और सुबह होने पर उस
    वृक्ष को छोड़कर चले जाते हैं. वैसे हीं संसार में हमारे जीवन में अनेक लोग आते हैं और फिर
    दूसरी राह पर चले जाते हैं.
  • चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य हिंसक जानवरों से भरे वन में रह ले, पेड़ पर घर बना ले, पत्ते और फल खा ले, घास-फूस
    की बिस्तर पर सो ले, वृक्षों की छाल पहन ले, लेकिन धनहीन होने की स्थिति में बन्धु-बांधवों
    से साथ भूलकर भी न रहे. क्योंकि साथ रहने पर उसे पल-पल अपमान सहना पड़ेगा.
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