देशभक्ति के गीत हिंदी में – Desh Bhakti Geet in Hindi Written for Kids Lyrics New
Desh Bhakti Geet in Hindi Written
सरहद पर बन्दूक
सरहद पर बन्दूक लिए, वो सैनिक जो खड़ा है.
माँ की आँखों में उसके, वो पानी जो भरा है.
जख्म उसके सीने में, जो आज भी हरा है,
गवाही दे रहा, नहीं कभी वो डरा है,
छोड़ गया हो दुनिया भले, नहीं लेकिन वो मरा है…
तिरंगा लिए बचपन में जो, चमक चेहरे पे आती थी,
सोते हुए रोज़ उसे जो, किस्से माँ सुनाती थी,
सपनों में भी उसके, परियां नहीं, माँ भारती जो आती थी,
बेटे को वर्दी में देख, सपने जो माँ सजाती थी,
वो किस्से नहीं आज चींख हैं, वर्दी नहीं एक टीस है…
तारीख ने खुद को, फिर आज जो दोहराया है,
वर्दी में गया था जो, तिरंगा लिपट फिर आया है,
तब टूटीं थी चूड़ियाँ, आज गया बेटे का साया है,
पिता की टंगी वर्दी का मान, क्या खूब इसने बढ़ाया है,
एक माँ पर न्यौछावर कर प्राण, बेटा घर को आया है|
आती थी याद माँ की आँचल, वो तिरंगे को चूमता था,
लोरी जो आती याद माँ की, राष्ट्रगान वो सुनता था,
अपने घर को हर पल याद कर, सरहदओं पर घूमता था,
सपने में मिल आए माँ से एक पल, सोच आँखें मूँदता था,
कुर्बान हो इस माटी पर मानो, हर कतरा झूमता था,
माँ भी इधर अकेले में जब, बेटे को जो याद करती थी,
एक पल को मान भारी, दूसरे पल वो डरती थी,
एक आँख खुशी के बूंद, दूसरे में माँ की ममता बहती थी,
कहना जो होता बेटे से कुछ , उसके खिलौनों से कहती थी,
अकेले रहकर भी वो, एक पल भी न अकेले रहती थी |
लेकिन अब जो उस पर बीती है, ना बाकी ये कहानी रही,
वो खिलौना भी न रहा, वो किलकारियाँ भी अब नहीं,
एक बार जो दुख सहा था, दोबारे वही घड़ी सही,
तब भी न कुछ कहा था, अब भी कुछ ना कही,
माँ तो फिर माँ थी, सब सहकर भी माँ रही…
– विशाल शाहदेव
अरुण यह मधुमय देश हमारा
अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।।
सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा।।
लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए, समझ नीड़ निज प्यारा।।
बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा।।
हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा।।
– जयशंकर प्रसाद jaishankar prasad ki desh bhakti kavita
भजो भारत को तन-मन से
भजो भारत को तन-मन से।
बनो जड़ हाय! न चेतन से॥
करते हो किस इष्ट देव का आँख मूँद का ध्यान?
तीस कोटि लोगों में देखो तीस कोटि भगवान।
मुक्ति होगी इस साधन से।
भजो भारत को तन-मन से॥
जिसके लिए सदैव ईश ने लिये आप अवतार,
ईश-भक्त क्या हो यदि उसका करो न तुम उपकार।
पूछ लो किसी सुधी जन से।
भजो भारत को तन-मन से॥
पद पद पर जो तीर्थ भूमि है, देती है जो अन्न,
जिसमें तुम उत्पन्न हुए हो करो उसे सम्पन्न।
नहीं तो क्या होगा धन से?
भजो भारत को तन-मन से॥
हो जावे अज्ञान-तिमिर का एक बार ही नाश,
और यहाँ घर घर में फिर से फैले वही प्रकाश।
जियें सब नूतन जीवन से।
भजो भारत को तन-मन से॥
– मैथिलीशरण गुप्त maithili sharan gupt ki desh bhakti kavita
लगता है कोई राष्ट्रीय पर्व आज है
लगता है कोई राष्ट्रीय पर्व आज है,
देखो! देशभक्ति गीत बज रहे हैं,
दुकानों में तिरंगे बिक रहे हैं ।
वही भष्ट्राचारी नेता भाषण दिए जा रहे हैं,
फिर वही वादे, फिर वही धोखे किये जा रहे हैं,
और गणतंत्र के टूटे फूटे गण,
तिरंगे को सलामी दिए जा रहे हैं ।
सबमें आज देशसेवा की होड़ है,
देखो चौक चौराहे सज रहे हैं,
दुकानों में आज तिरंगे बिक रहे हैं ।
कुर्बानियां सबकी आज याद की जा रही है,
बदलाव की बस वही पुरानी बात की जा रही है,
मंत्रियों की नींद ए. सी. में चल रही है,
वही ठंड से मौतों की तादाद बढ़ रही है,
देखो कतार में ‘आज’ जय हिंद के नारे लग रहे हैं,
दुकानों में आज तिरंगे बिक रहे हैं ।
रंगों की जात बांटने वाले आज,
तिरंगे लेकर घूमेंगे,
फिर नए-नए इतिहास निकाल कर,
वाट्सएप्प पर ये भेजेंगे,
‘आधुनिक बेरोजगारी’ है साहब,
दंगे-फसाद का ही सोचेंगे,
ना बदले हालात, ना बदले दिन,
दुकानों के तिरंगों को भी है पता,
कचरे में मिलेंगे ये अगले दिन ।
शहीद होने वाले जवानों!
आपकी जगह लेगा कौन यहाँ,
आधी आबादी तो आपकी तस्वीरों पर
‘लाइक्स’ के लिये कसमें लिख रहे हैं,
इस व्यंग्य को बढ़ावा देने से अच्छा,
उनके लिए कुछ क्षण के मौन रख लें,
वक्तव्यों से बेहतर हम अपना मन्तव्य बदलें ।
तिरंगे की भांति आज सबलोग लग रहे हैं
लाल और हरे के बीच श्वेत-शांत रंग दिख रहे हैं।
दुकानों में आज तिरंगे बिक रहे हैं…
–Jaya Pandey
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