8 देशभक्ति कविता हिन्दी में short Desh Bhakti Poem in Hindi desh bhakti kavita :

देशभक्ति कविता हिन्दी में short Desh Bhakti Poem in Hindi desh bhakti kavita :
Short Desh Bhakti Poem in Hindi देशभक्ति कविता हिन्दी में Desh Bhakti Kavita

 

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  • Short Desh Bhakti Poem in Hindi Font language
    – तब विद्रोह जरुरी है

  • जब सूरज संग हो जाए अंधियार के, तब दीये का टिमटिमाना जरूरी है…
    जब प्यार की बोली लगने लगे बाजार में, तब प्रेमी का प्रेम को बचाना जरूरी है……
    जब देश को खतरा हो गद्दारों से, तो गद्दारों को धरती से मिटाना जरूरी है….
    जब गुमराह हो रहा हो युवा देश का, तो उसे सही राह दिखाना जरूरी है………..
    जब हर ओर फैल गई हो निराशा देश में, तो क्रांति का बिगुल बजाना जरूरी है…..
    जब नारी खुद को असहाय पाए, तो उसे लक्ष्मीबाई बनाना जरूरी है…………
    जब नेताओं के हाथ में सुरक्षित न रहे देश, तो फिर सुभाष का आना जरूरी है……
    जब सीधे तरीकों से देश न बदले, तब विद्रोह जरूरी है……………..
    – अभिषेक मिश्र

  • Bharat Mata Poem in Hindi 
    Desh Bhakti Kavita
    – मैं भारत माता हूँ

    इतने व्यस्त हो गए तुम, कि तुम्हारा देशप्रेम साल में 2 बार जगता है
    उन सैनिकों के बारे में सोचो, जिनके जीवन का पल-पल देश के लिए लगता है
    कोई देश के लिए शान से मरता है………….
    और एक तुम हो, जिसे देश के लिए जीना भी मुश्किल लगता है ?
    On field Players और On Screen Heroes आदर्श बन गए हैं तुम्हारे
    उन लोगों को तुम याद तक नहीं करते, जो Real Life में Heroes हैं
    जरा सोचो इन खोखले Role Models ने तुम्हें क्या दिया है अबतक ?
    तुम अपने आदर्श बदल लो, इससे पहले कि औंधे मुँह गिरो तुमपार्टी विरोधियों के विरुद्ध डटकर खड़े हो जाते हो तुम

    राष्ट्र विरोधियों के विरुद्ध क्यों नहीं आवाज उठाते हो तुम ?
    राजनीति, सत्ता सुख पाने का जरिया है जिनके लिए उन्हें क्यों पूजते हो तुम ?
    इससे पहले कि देर हो जाए, राष्ट्रनीति को राजनीति का विकल्प बना लो तुम
    न एक शिक्षा नीति, न समान नागरिकता नीति
    ये तो है अंग्रेजों की बांटों और राज करो नीति
    क्यों किसी और से बदलाव किसी उम्मीद करते हो तुम……
    जब खुद देश के लिए……. कुछ नहीं करते हो तुम ? ? ?
    मैं भारत माता हूँ तुम्हारी…. मैं आज भी रो रही हूँ
    क्योंकि तुम आज भी मोह की नींद में सो रहे हो
    हो सके तो, अब भी जाग जाओ तुम……..
    इससे पहले कि सब कुछ खत्म हो जाए, खुद को पहचान जाओ तुम.
    – अभिषेक मिश्र ( Abhi )


  • Desh Bhakti Ki Kavita in Hindi –
    हिन्द हमारा है

  • हम हिन्द के हैं
    हिन्द हमारा है
    ना फौजी हैं ना नेता
    फिरभी हिन्द का दायित्व सम्भाला है
    क्योंकि हिन्द हमारा है
    किसी ने कहा मुसलमान होने पर गर्व करो
    कोई बोल गया गर्व से कहो तुम हिंदु हो
    ये नेता बोल बोल कर चले गए,
    मग़र उनके बोल जन जन में अंगारों जैसे फूट पड़े,
    दोनों विचारों का अभिमान वही टकराता है,
    दो सम्प्रदायों का अलगाव वही बहकाता है,
    फिर वही कहीं पर ‘अखण्ड भारत’ का अभिलेख
    छिन्न भिन्न पड़ जाता है,
    इसी अभिलेख को साकार करने में
    कितनों ने जीवन गंवाया है
    क्योंकि हिन्द हमारा है ।
    स्वयं को श्रेष्ठ कहो
    मगर क्या हक़ तेरा कि दूजे को नीच कहे,
    इस आज़ादी के लिए सबके हैं रक्त बहे,
    फिर तू क्यों धर्म का संरक्षक बनता है,
    जो है अनादि काल से संचित,
    उसको कौन मिटा सकता है?
    बनना है तो राष्ट्र का संरक्षक बन,
    धर्म तो युगों से कायम है सनातन है,
    मगर राष्ट्र ये जो टूट रहा है,
    उसकी रक्षा का दायित्व हमारा है ।
    क्योंकि हिन्द हमारा है ।
    नेताओं राजनेताओं के भाषण ही हमको तोड़ रहे हैं,
    धर्म से तो जोड़ रहे हैं, मग़र राष्ट्र से ही तोड़ रहे हैं,
    राम रहीम में भेद बताकर घृणा का विष घोल रहे हैं,
    राजनीती नहीं ये प्रत्यक्ष देशद्रोह है
    कप्टियो को पहचानो !
    जो जन गण मन के जयकारों को छोड़ रहे हैं,
    ना हिन्दू, ना मुसलमान,
    हमें भारतीयों के संगठन का संकल्प उठाना है
    क्योंकि हिन्द हमारा है ।
    एकेश्वरवादी यहां बोली से प्रहार करते हैं,
    नास्तिक हैं वो जो लोगो में घृणा का संचार करते हैं,
    धार्मिक इतिहास बताते फिरते हैं,
    और राष्टीय भविष्य को बाधित करते हैं,
    ये मानव भक्षी हैं जो पंथ काज से सबको छलते हैं।
    हर तरफ सामाजिक द्वेष का सृजन हो रहा है,
    ऐ हिन्द! अब तेरा पतन हो रहा है ।
    हिन्द का पतन है हम सबका अंत,
    क्योकि हिन्द हमारा है ।
    आज यहां संस्कृतियों में भेद बताये जाते हैं,
    कल हम सांस्कृतिक मेल से जाने जाते थे,
    पग पग में एकता को दर्शाते थे,
    ये धरम करम का बीड़ा उठाये कहाँ फंसे हैं?
    हम तो भारत के भाग्यविधाता थे ।
    चलो फिर शुभ नाम से जागे
    और फिर शुभ आशीष मांगे
    फिर जयगाथा दोहराएं
    क्योकि हिन्द हमारा है
    इसकी रक्षा का दायित्व हमारा है ।
    -Jaya Pandey

  • Patriotic Poem in Hindi Language Font
    – **बहुत बदल गया अपना देश **

    तबसे अब में खूब,मचा विकास का जनादेश !
    एसी तैसी हुआ ,बहुत बदल गया अपना देश !!
    बहुत बदल गया अपना देश !
    अंग्रेजी का भाव बढ़ गया ,देश हुआ परदेश !
    पगड़ी गमछा लाज लगे,भाए बिलायती भेष!!
    बहुत बदल गया अपना देश !
    दाल भात पचता नहीं,रोग बर्गर पिज्जा की तैस !
    शौखिनी में बड़ी गरीबी,भुगते लाग बाज की रेस !!
    बहुत बदल गया अपना देश !
    माँ बहन अफसोस हो गयी,बिटिया हुई कलेस!
    कलंकओढ़ बहू जल गयी,कलमुही है सन्देश!!
    बहुत बदल गया अपना देश !
    गवांर मरे मजदूरी बिन  ,पढे़-लिखे सब शेष !
    करता धरता आलस बांचे,बचा न कुछ उद्देश !!
    बहुत बदल गया अपना देश !
    साधू सन्त व्यापार करे ,चोर उचक्का आदेश !
    हुआ निकम्मा अभिेनेता ,जग बांटे सब उपदेश!!
    बहुत बदल गया अपना देश !
    शाकाहारी खेत खरीहान ,उजाड़ बसे सब ऐस!
    मांसाहारी भूख जीभ का, शमशान बना ए द्वेष!!
    बहुत बदल गया अपना देश !
    चारा सारा राजनीति खा गया,गाये खाए आवेश !
    किसान मरे बिन पानी के,न लगा किसीको ठेस !!
    बहुत बदल गया अपना देश !
    पत्थर खुद पर दे मारे ,कुछ उन्मादी तर्क अन्वेष !
    आम बात हुई सहादत ,क्या सरकारी अध्यादेश!!
    बहुत बदल गया अपना देश !
    बहुत बदल गया अपना देश !
    – अरविंद कुमार तिवारी
    बामपुर,इलाहाबाद


  • Hum Hain Hindustani Poetry
    Desh Bhakti Kavitayen in Hindi
    – हम हैं हिन्दुस्तानी

  • Hum Hai Hindustani, Hindustan Hamara Hai
    Hum Hai jaha Ke sher,ye Abhiman Hamara है
    Lakh jamana chahe hame metane ki,
    par ye na bhule Ke sarhado par balidan Hamara है
    Kah do vatan Ke un gaddaro se,
    ham Hindustani hai ye iman Hamara है
    Are ye vaihsi daride kya ukhar lege,
    Ke unke aage tiraja shan Hamara hai
    Ham hai Hindustani Hindustan Hamara hai,
    ham hai jaha Ke sher ye abhiman Hamara है
    – md shamim

  • Desh Prem Kavita in Hindi
    – सारा देश हमारा

    केरल से कारगिल घाटी तक
    गोहाटी से चौपाटी तक
    सारा देश हमारा
    जीना हो तो मरना सीखो
    गूंज उठे यह नारा
    सारा देश हमारा
    केरल से कारगिल घाटी तक…
    लगता है ताजे कोल्हू पर जमी हुई है काई
    लगता है फिर भटक गई है भारत की तरुणाई
    कोई चीरो ओ रणधीरो !
    ओ जननी के भाग्य लकीरों !
    बलिदानों का पुण्य मुहूरत आता नहीं दुबारा
    जीना हो तो मरना सीखो गूंज उठे यह नारा
    सारा देश हमारा
    केरल से कारगिल घाटी तक…
    घायल अपना ताजमहल है ,घायल गंगा मैया
    टूट रहे हैं तूफानों में नैया और खेवैया
    तुम नैया के पाल बदल दो
    तूफानों की चाल बदल दो
    हर आंधी का उतार हो तुम,तुमने नहीं विचारा
    जीना हो तो मरना सीखो गूंज उठे यह नारा
    सारा देश हमारा
    केरल से कारगिल घाटी तक…
    कहीं तुम्हें परवत लड़वा दे ,कहीं लड़ा दे पानी
    भाषा के नारों में गम है ,मन की मीठी वाणी
    आग दो इन नारों में
    इज्ज़त आ गई बाजारों में
    कब जागेंगे सोये सूरज ! कब होगा उजियारा
    जीना हो तो मरना सीखो गूंज उठे यह नारा
    सारा देश हमारा
    केरल से कारगिल घाटी तक…
    संकट अपना बाल सखा है इसको कंठ लगाओ
    क्या बैठे हो न्यारे-न्यारे मिलकर बोझ उठाओ
    भाग्य भरोसा कायरता है
    कर्मठ देश कहाँ मरता है
    सोचो तुमने इतने दिन में कितनी बार हुंकारा
    जीना हो तो मरना सीखो गूंज उठे यह नारा
    सारा देश हमारा
    केरल से कारगिल घाटी तक…
    – बालकवि वैरागी balkavi bairagi ki desh bhakti kavita


  • Mathrubhumi Poem in Hindi
    Desh Bhakti Kavita Hindi
    – मातृभूमि

    ऊँचा खड़ा हिमालय
    आकाश चूमता है,
    नीचे चरण तले झुक,
    नित सिंधु झूमता है।
    गंगा यमुन त्रिवेणी
    नदियाँ लहर रही हैं,
    जगमग छटा निराली
    पग पग छहर रही है।
    वह पुण्य भूमि मेरी,
    वह स्वर्ण भूमि मेरी।
    वह जन्मभूमि मेरी
    वह मातृभूमि मेरी।
    झरने अनेक झरते
    जिसकी पहाड़ियों में,
    चिड़ियाँ चहक रही हैं,
    हो मस्त झाड़ियों में।
    अमराइयाँ घनी हैं
    कोयल पुकारती है,
    बहती मलय पवन है,
    तन मन सँवारती है।
    वह धर्मभूमि मेरी,
    वह कर्मभूमि मेरी।
    वह जन्मभूमि मेरी
    वह मातृभूमि मेरी।
    जन्मे जहाँ थे रघुपति,
    जन्मी जहाँ थी सीता,
    श्रीकृष्ण ने सुनाई,
    वंशी पुनीत गीता।
    गौतम ने जन्म लेकर,
    जिसका सुयश बढ़ाया,
    जग को दया सिखाई,
    जग को दिया दिखाया।
    वह युद्ध–भूमि मेरी,
    वह बुद्ध–भूमि मेरी।
    वह मातृभूमि मेरी,
    वह जन्मभूमि मेरी।
    – सोहनलाल द्विवेदी patriotic poem in hindi by sohanlal dwivedi

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