Latest Poem in Hindi – लेटेस्ट क्यूट कविता
लेटेस्ट क्यूट कविता – Latest Poem in Hindi – Cute Kavita
- अच्छा लगता है।
कब तक पहने रहूँ.. हँसी का ये मुखौटा,
कभी कभी अकेले में रोना अच्छा लगता है।
कब तक सहूँ ये चिलमिलाती धूप,
अचानक ही बिन बादल बारिश का होना अच्छा लगता है।
कब तक करवटें बदलता रहूँ इस काँटों भरे बिस्तर पर,
कभी कभी खुली आँख से गहरी नींद में सोना अच्छा लगता है।
कब तक सोचता रहूँ बीते हुए कल की,
आने वाले कल का खुशनुमा ख्वाब अच्छा लगता है।
कब तक पूछता रहूँ सवाल औरों से,
अब तो खुद से ही सवाल, और जवाब अच्छा लगता है।
कब तक करूँ सुबह का इंतज़ार इस अँधेरी रात में,
भोर में घाँस पर पड़ा वो आफ़ताब अच्छा लगता है।
कब तक कहूँ की किस्मत ही रूठी है मेरी,
अब तो खुद से रूठ खुद को मनाना अच्छा लगता है।
कबतक रहूँ इस हक़ीक़त के घर में,
बिखरे टूकड़ों को जोड़, एक झूठा सपना सजाना अच्छा लगता है।
कब तक झूठ कहूँ खुद से ही,
लेकिन खुद से वो कड़वा सच छुपाना अच्छा लगता है।
कब तक याद करूँ वो बचपन, वो छोटा सा बच्चा,
लेकिन क्या करूँ, उसकी मासूम किलकारियां सुनना अच्छा लगता है।
कब तक रहूँ यूँ ही बिखरा बिखरा,
लेकिन खुद टूकड़ों में बिखर, उन्हें चुनना अच्छा लगता है।
कब तक फसा रहूँ इन उलझनों में,
लेकिन क्या करूँ, शब्दों का ये जाल बुनना अच्छा लगता है।
कब तक डरूँ एक पत्थर से,
क्या करूँ, शीशे के उस महल में रहना अच्छा लगता है।
कब तक यूँ ही तड़पाता रहूँ खुद को बिन मतलब ही,
लेकिन क्या करूँ, अब तो शायद वो दर्द ही अच्छा लगता है।
कब तक रहूँ खामोश, शब्द भी मिलते नहीं,
क्या करूँ, दिल की बात यूँ ही आपसे कहना अच्छा लगता है।
– विशाल शाहदेव
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“खग सा ये मन”
रे ‘मन’ क्यों तू ‘खग’ सा होता जा रहा है,बोल ना किसकी तलाश में तू पंख पसार रहा है,क्या तेरा कोई वजूद नहीं,क्या तुझमें कुछ मौजूद नहींबोल ना क्यों तू प्यासा घाट-घाट भटकता है,तुझे तो पता है ना कोई है नहीं अपना,फिर क्यों तू अंदर अपनेपन का हलचल करता है,बोल ना फिर क्यों तू कोई ख्वाब साथ लिए फिरता है,आशियां छोड़कर अपना क्यों तू सपनों की दुनिया में खो जाता है,कई दफ़ा तुम्हें तो भगाया गया वहाँ से,बोल ना फिर क्यों तू उम्मीदें लिए उसके आँगन तक पहुँच जाता है,रे ‘मन’ तेरे अंदर भी जीवन है,क्यों तू किसी के सहारे चलता है,होंगे तुझे भी बहुत चाहने वाले,बोल ना क्यों तू एक ही नाम हमेशा रटता है?रे ‘मन’ क्यों तू ‘खग’ सा होता जा रहा है?
– हिमांशु शर्मा ‘हेमु’
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