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Love Ghazal in Hindi – लव गजल हिन्दी में लव गजल हिन्दी में - Love Ghazal in Hindi Language Font

लव गजल हिन्दी में – Love Ghazal in Hindi Language Font

  • ऐ मोहब्बत

    तरसता हूँ तेरी ,एक नजर के लिए
    ऐ मोहब्बत तू मुझको, मिले ना मिले
    तेरे दीदार को है, ये प्यासे नयन
    मेरे नैन को, ये सुख मिले ना मिले
    तेरे लिए हीं मैं, दुनिया भुलाया
    तेरा प्यार मुझको, मिले ना मिले
    हर पल ख्यालों में, तुम ही बसे हो
    तेरा साथ मुझको, मिले ना मिले
    – कंचन पाण्डेय

  • प्रेम तो था पर

    प्रेम तो था पर कभी, बयां न कर सके
    ख्वाइशे दिल में रह गई, कभी बता ना सके
    चाह के भी चाहत को, तेरे पूरा न कर सके
    दिल आज भी तड़पता है, कभी भुला ना सके
    हो गए तुम जुदा मुझसे, देख कर मेरी बेरूखी
    खामोश है ये दिल, पर बयां न कर सके
    भुला दो तुम भले हमको, हम ना भुला पाएंगे
    चाहते हैं तुम्हें कितना, कभी  बता ना पाएंगे
    – कंचन पाण्डेय

  • छोड़ दिया

  • खुशबु  ने फूलों  से मिलना जुलना छोड़ दिया
    कलियों  ने  उस बहार में खिलना छोड़ दिया
    हवाओं ने आग से थोड़ी सी नजर क्या मिलाई
    रुठ कर मोम ने आग से पिघलना छोड़ दिया
    बड़ी कशमकश में पड़ गए हैं ये गुलजार सारे
    रुठ कर सब से मौसम ने बदलना छोड दिया
    रात  नहीं होती  और  ख्बाब भी नहीं आते हैं
    जलते हुए सूरज ने जब से ढलना छोड़ दिया
    ये नाराजगी छाई हुई है यहां हर किसी पर
    शायद प्यार ने  दिल में उतरना छोड़ दिया
    मोहब्बत की कहानी किताबों में मिलती है
    अफसोस लोगों ने किताब पढ़ना छोड़ दिया
    आकाश राठौड़
    पुणे नगर रोड
    कारेगांव
    ता-शिरुर
    जि-पुणे
    पुणे महाराष्ट्र

  • ~ आज फिर ~

    यादों से तेरी आज फिर दामन छुड़ा रही हुँ मैं, मचलते अरमानों को लोरी से सुला रही हुँ मैं ।
    सुर सरगम के छेड़ दिये थे तराने दिल में तुने, क्यूँ गज़ल तेरे नाम की आज फिर गुनगुना रही हुँ मैं ।
    मिला के नजरें नजरों से लगा दी आग इश्क की,
    आग तेरे इश्क की अश्कों से बुझा रही हुँ मैं ।
    मोहब्बत तेरी क्यूँ गुनाह बन बैठी ज़माने में,
    पाक-ए-दामन पर लगे वो दाग धुला रही हुँ मैं ।
    तोड़ के दिल के टुकड़े उछाल दिये हवा में तूने, बिखरे कांच से दिल के टुकड़े फिर जुटा रही हुँ मैं ।
    महज़ इश्क की बातें ही रह गई है पास मेरे वीराने उजड़े दिल का हाल फिर सुना रही हुँ मैं ।
    लत ऐसी लगी तेरी ‘अंकनी’ को शराब सी,
    बस उसी हादसे सी मोहब्बत को भुला रही हुुँ मैं।
    डॉ. किरण पांचाल (अंकनी)

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