महिला सशक्तिकरण पर निबंध |||| Mahila Sashaktikaran Nibandh in Hindi Essay :

Mahila Sashaktikaran Nibandh in Hindi – महिला सशक्तिकरण पर निबंध
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  • महिला सशक्तिकरण एक अभियान है। इसके अंतर्गत महिलाओं को जागरूक कर उनकी हर क्षेत्र में सामाजिक
    और आर्थिक भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाता है। देश के आर्थिक प्रगति तथा सर्वांगिण विकास के लिए ये
    अति महत्वपूर्ण है। इससे उनके जीवन को भी एक उच्च स्तर मिलता है। जिससे अपने कैसे भी महत्वपूर्ण फैसले
    वे स्वयं ले सकती हैं। समाज में उन्हें अपनी पहचान मिलती है। वे सजग और सक्षम बन पाती हैं।
  • महिला सशक्तिकरण को सरल शब्दों में कहा जाए तो, इससे महिलाओं को उनकी क्षमताओं से परिचित करवाया जाता है।
  • ये एक पहल है उन्हें, उनके अधिकारो के प्रति जागरूक करने के लिए।

  • एक सशक्त समाज की रचना एवं देश को समृद्धशाली बनाने हेतु महिलाओं का पूरी तरह सक्षम होना सबसे जरूरी है। हमारा देश आज भी पुरुष प्रधान है। समाज में समानता से ही राष्ट्र का वास्तविक विकास सम्भव है। सशक्तिकरण की प्रक्रिया में औरतों को समाज के सभी रूढिवादी परंपराओं के प्रति जागरूक किया जाता है। रूढ़िवादिता में पितृसत्तामक सोच एक बड़ी वजह है, महिलाओं की समाज में दयनीय स्थिति की। सशक्तिकरण के दौरान भौतिक, आध्यात्मिक, शारीरिक अथवा मानसिक, सभी स्तर पर महिलाओं में आत्मविश्वास जाग्रत करना सबसे अहम होता है। इस कार्य में महिलाओं का शिक्षित होना अति आवश्यक है, ताकि वें अपने साथ दुसरी महिलाओं के अधिकारों को भी समझ सकें। अगर महिलाएं स्वयं एक-दुसरे को प्रोत्साहित करेंगी तो आधी समस्या स्वयं समाप्त हो जाएगी। इसके द्वारा वें सम्मान सहित अपने जीवन परिवार तथा समाज से जुड़े फैसले ले सकतीं हैं। अपने वास्तविक अधिकारों के लिए सक्षम होना ही महिला सशक्तिकरण है।
  • भारत में कई तरह की सामाजिक बुराईयाँ हैं महिलाओं के प्रति जैसे;  दहेज प्रथा, भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा, यौन शोषण , लैंगिक भेदभाव, मानव तस्करी आदि कई ऐसी बुराईयाँ हैं जो उन्हें पीछे की ओर ढकेलता है। जिससे राष्ट्र में सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक अंतर। इनका सही उपचार यही है कि महिलाओं को शिक्षित किया जाए ताकि ऐसी बुराईयों का सामना वें स्वयं कर पाएं। विश्व स्तर पर यूएनडीपी जैसे अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं तथा कई नारीवादी आंदोलनों आदि के द्वारा महिलाओं के सामाजिक समता, स्वतंत्रता, न्यायिक अधिकारों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • भारतीय संविधान के अनुसार महिलाओं को समाज के हर क्षेत्र में बराबरी का अधिकार मिलना चाहिए। और लगातार महिलाओं की बेहतरी के लिए कई कानूनी अधिकार सरकार द्वारा संशोधित किए गए हैं।  महिला-बाल विकास समिति इस क्षेत्र के सम्पूर्ण विकास की ओर कार्यरत है। हालांकि इन गंभीर मुद्दों का निवारण सबके लगातार प्रयास से ही संभव हो सकता है। इसमें महिलाओं के अपने एवं अपने जैसी औरतों के लिए उठाए गए ठोस कदम इस कार्य में कई मायनों में सकरात्मक बदलाव ला सकतें हैं।
  • ऐसा नहीं है की महिलाएं हमेशा ऐसी मजबुर रहीं हैं।

  • महारानी लक्ष्मीबाई, महारानी दुर्गावती, महारानी पद्मिनी जैसी कई वीरांगनाएं हुई हैं इस धरती पर जिन पर आज भी पूरे देश को गर्व है। जिनके अद्मय वीरता और साहस के समक्ष शत्रु भी नतमस्तक हुए जाते थे। इतिहास भरे पडे़ हैं इन उदाहरणों से। शास्त्र-पुराण पौराणिक कहानियां इसके साक्षी हैं, कि पुराने जमाने में औरतें स्वतंत्र हुआ करती थीं उनकी समाज में प्रतिष्ठा होती थी। अपने निर्णय स्वयं ले सकती थीं कोई भेदभाव नहीं था। कैसी भी पर्दा प्रथा उस समय नहीं थी। घुंघट और पर्दे की जरूरत तब पड़ने लगी, जब विदेशी आक्रमणकारियों से औरतों के लिए खतरा उत्पन्न होने लगा। इस तरह औरतों को सुरक्षित रखने के ये उपाय उनके लिए बंधन बनते चले गए। जो उन्हें फिर काबू करने के लिए उपयोग किए जाने लगे। धीरे-धीरे समाज में महिलाओं के प्रति क्रूरता और कूरितियों ने अपनी जगह बना ली। उनके अपने ही उन्हें प्रथा के नाम पर बलि चढ़ाने को ढकेल दिया करते थे। इससे उनकी स्थिति बिगड़ती चली गयी। औरतें खुद ही दुसरी औरतों की शत्रु बन बैठीं। सती प्रथा, विधवा प्रथा, देवदासी प्रथा इत्यादि कई ऐसी प्रथाओं ने समाज को अंधा बना दिया और समस्याएँ जटिल बनते चले गए ।
  • इन बुरे चलनों के खिलाफ कई खुले विचारों वाले महान भारतीयों के द्वारा विरोध जताया गया और इसे हटाने के लिए हरसंभव प्रयास उन्होंने किए। इतिहास में कई नाम हैं जिन्होंने कड़े संघर्षों के बाद सामाजिक कुरितियों को हराने में विजय पायी। उनमें राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा खत्म करने में अभूतपूर्व भूमिका निभायी थी। ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने अपने कठिन प्रयासों से विधवा पुर्नविवाह अधिनियम 1856 की शुरूआत करवाई थी। ऐसै हीं कई महान भारतीय समाज सुधारक थें जिन्होंने महिला उत्थान के लिए संघर्ष किए जैसे; आचार्य विनोबा भावे, महात्मा ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले, स्वामी विवेकानन्द आदि।
  • आधुनिक समाज औरतों के अधिकारों को लेकर काफी सजग है।आज महिलाओं के उत्थान के लिए कई ऐसै सामाजिक संस्थाएं और गैर सरकारी संगठन हैं, जिनकी संख्याओं में प्रतिदिन बढोत्तरी हो रही है। औरतें पहले की अपेक्षा आज ज्यादा खुले विचारों वाली हैं। वें समाज की दकियानुषी जंजीरों को तोड़ना जानती हैं। अपनी शिक्षा की अहमियत को समझती हैं। कई मायनों में उन्होंने आज स्वयं को समाज में सिद्ध किया है। अपने हक के लिए वें आवाज उठाने से अब कतराती नहीं हैं। परन्तु अभी भी महिलाओं का सशक्त होना शेष है, क्योंकि पिछड़ी जगहों में अबतक जागरूकता नहीं फैली है। और आधुनिक समाज में भी पिछड़ी कई बुराईयाँ बाकी हैं। औरतों के प्रति बढ़ते अपराध उनके लिए डर का माहौल बना रहें। महिलाओं को शिक्षित होने के साथ आत्मरक्षा में भी निपुण होने की आवश्यकता है। इसलिए महिला सशक्तिकरण हर क्षेत्र के लिए अति महत्वपूर्ण है।
  • सरकार द्वारा महिलाओं की सुविधाओं के लिए कई पहल की गईं हैं।

  • महिलाओं के कानूनी अधिकार के लिए संसद द्वारा पारित किए गए अधिनियम के कुछ अंश इस प्रकार हैं;
  • अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम- 1956
  • दहेज रोक अधिनियम- 1961
  • समान पारिश्रमिक अधिनियम- 1976
  • लिंग परीक्षण तकनीक अधिनियम- 1994
  • बाल विवाह रोकथाम अधिनियम- 2006
  • मातृत्व सुविधा अधिनियम- 1961
  • महिला सशक्तिकरण को देश में पूर्णतया सफल बनाने के लिए इसे प्रत्येक परिवार में बचपन से ही बढावा
    देने की आवश्यकता है। घर से ही सर्वप्रथम एक बेहतर शिक्षा की शुरूआत होती है। किसी भी बच्चे की परवरिश
    माँ पर सबसे अधिक निर्भर करती है। अगर महिलाएं पढी-लिखी होंगी तभी वें अपने परिवार को शारीरिक-मानसिक
    तौर पर स्वस्थ रख पांएगी। जिससे भविष्य के सुनहरे राष्ट्र का निर्माण संभव हो पाएगा। महिलाओं को स्वयं
    अपनी महत्ता समझना सबसे अधिक जरूरी है।
  • अतः महिला सशक्तिकरण का सफल होना अति महत्त्वपूर्ण है, किसी भी परिवार, समाज या राष्ट्र के लिए।।
    – ज्योति सिंहदेव

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