Manusmriti in Hindi Language मनुस्मृति हिंदी अर्थ सहित

Manusmriti in Hindi – मनुस्मृति हिंदी अर्थ सहित
Manusmriti in Hindi

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  • मनुस्मृति हिंदी अर्थ सहित
  • पाषण्डिनो विकर्मस्थान्बैडालव्रतिकांछठान्।
    हैतुकान्वकवृत्तींश्च वाड्मात्रेणापि नार्चयेत्।।
    अर्थ- पाखंडी, बुरे कर्म करने वाला, दूसरों को बेवकूफ बनाकर उनका धन ठगने वाला,
    दूसरों को दुख पहुंचाने वाला और  वेदों में श्रद्धा न रखने वाला. इन 5 प्रकार के लोगों को
    अपना अतिथि नहीं बनाना चाहिए. और इनसे जल्द-से-जल्द छुटकारा पाने की कोशिश करनी चाहिए.
  • स्त्रियो रत्नान्यथो विद्या धर्मः शौचं सुभाषितम्।
    विविधानि च शिल्पानि समादेयानि सर्वतः।।
    अर्थ- सुंदर स्त्री, रत्न, ज्ञान, धर्म, पवित्रता, उपदेश और अलग-अलग  प्रकार के शिल्प ये चीजें,
    जहाँ कहीं भी, जिस किसी से भी मिलती हो पाने की कोशिश करनी चाहिए.
  • मृगयाक्षदिवास्वप्नः परिवादः स्त्रियों मदः।
    तौर्यत्रिकं वृथाद्या च कामजो दशको गणः।।
    अर्थ- शिकार खेलना, जुआ खेलना, दिन में भी कोरे सपने देखना,  परनिंदा करना, स्त्रियों के साथ रहना, शराब पीना, नाचना, श्रृंगारिक कविताएं या गीत गाना, बाजा बजाना, बिना किसी उद्देश्य के घूमना. ये 10 बुरी आदतें काम भावना के कारण जन्म लेती है. इसलिए हमें काम से बचकर रहना चाहिए.
  • पैशुन्यं साहसं मोहं ईर्ष्यासूयार्थ दूषणम्।
    वाग्दण्डजं च पारुष्यं क्रोधजोपिगणोष्टकः।।
    अर्थ- चुगली करना, जरूरत से ज्यादा साहस, द्रोह, ईर्ष्या करना,  दूसरों में दोष देखना, दूसरों के धन को छीन लेना, गलियाँ देना, और  दूसरों से बुरा व्यवहार करना. ये 8 बुरी आदतें क्रोध से उत्पन्न होती है, इसलिए हमें क्रोध को नियन्त्रण में रखना चाहिए.

ऋत्विक्पुरोहिताचार्यैर्मातुलातिथिसंश्रितैः।
बालवृद्धातुरैर्वैधैर्ज्ञातिसम्बन्धिबांन्धवैः।।
मातापितृभ्यां यामीभिर्भ्रात्रा पुत्रेण भार्यया।
दुहित्रा दासवर्गेण विवादं न समाचरेत्।।
अर्थ- यज्ञ करने वाले, पुरोहित, आचार्य, अतिथि, माता, पिता, मामा आदि संबंधियों, भाई, बहन,
पुत्र, पुत्री, पत्नी, पुत्रवधू, दामाद और नौकरों से बहस नहीं करना चाहिए.

  • ऋतुकाल में स्त्री पुरुषों को संबंध नहीं बनाना चाहिय, और बताया गया है कि स्त्री पुरुषों को काम भावना पर नियंत्रण रखना चाहिए और बहुत अधिक संबंध बनाने से बचना चाहिए.
  • अपना जूठा भोजन किसी को नहीं देना चाहिए, ठहर-ठहर कर भोजन नहीं करना चाहिए, अधिक भोजन नहीं करना चाहिए और जूठे मुँह कहीं नहीं जाना चाहिए.
  • जो व्यक्ति अपने से बड़ों को प्रणाम करता है और उनकी सेवा करता है. उसकी आयु, विद्या, यश और बल बढ़ते हैं.
  • जिन चीजों से स्वाध्याय में बाधा पड़े, उन चीजों को छोड़ देना चाहिए.
  • जब अतिथि घर में आ जाए, तो उसे भोजन करवाने के बाद हीं भोजन करना चाहिए.
  • उदय होते समय, अस्त होते समय और ग्रहण के समय सूर्य को नहीं देखना चाहिए.
  • जिस रस्सी से गाय बंधी हो, उसे नहीं लांघना चाहिए.
  • जब वर्षा हो रही हो, उस वक्त रास्ते में नहीं दौड़ना चाहिए.
किसी भी पुरुष को अपने से अधिक उम्र वाली स्त्री से सम्बन्ध नहीं बनाना चाहिए.
जो पुरुष ऐसा करता है, उसका तेज, आयु और बल कम होता है.
  • बिल्कुल सुबह या शाम को भोजन नहीं करना चाहिए.
  • दूसरे के पहने हुए कपड़े या जूते इत्यादि नहीं पहनने चाहिए.
  • सुबह की धूप में नहीं बैठना चाहिए, ऐसा करना अच्छा नहीं होता है.
  • जहाँ बहस या लड़ाई हो रही हो, वहाँ नहीं जाना चाहिए.
  • कभी भी किसी का अपमान नहीं करना चाहिए.
  • अगर किसी बुरे व्यक्ति की तरक्की, बुरे कर्मों से हो रही हो. तो भी यह देखकर भी बुरे कर्म नहीं करने चाहिए.
  • अपमान से दिया गया अन्न और बुरे व्यक्ति द्वारा दिया गया अन्न कभी नहीं खाना चाहिए.
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