Patriotic Poems in Hindi देशभक्ति कविता
1st Patriotic Poems in Hindi
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हिंदुस्तान बसा दे
अंतर के तिमिर मिटा दो माता।
ज्ञान की नवज्योति जला दो माँ।।
सद्बुद्धि दे सबको माँ तू भारती।
भवसागर से हम सबको तार दे।।
निर्मल मन में आकर माता तू।
हुम् सब के सोये भाग जगा दे।।
गीत के नव शब्द देकर माँ हमें।
नव सृजन की लेखनी थमा दे।।
संगीत की झनकार गुंजा दे माँ।
टूटे फूटे इन शब्दों को सजा दे।।
देश उन्नति की ओर हो अग्रसर।
सबके मन मे हिंदुस्तान बसा दे।।
कवि राजेश पुरोहित
98,पुरोहित कुटी ,श्री राम कॉलोनी
भवानीमंडी
जिला झालावाड़
राजस्थान
मौलिकता का प्रमाण पत्र:-
उक्त रचना
मौलिक स्वरचित अप्रकाशित रचना है।
कवि राजेश पुरोहित
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2nd Poem: भारत माता की शान
- भारत माता की शान हूँ मैं, ए पी जे अब्दुल कलाम हूँ मैं
जो वन्देमातरम कहकर, गर्व से फूल जाए वो मुसलमान हूँ मैं
मैंने देखा था अजब नजारा, जब मैं मौत की नींद में सोया था…..
तो हिंदु या मुसलमान नहीं, पूरा हिन्दुस्तान रोया था……………..
जो कर सकता था, वो सब कुछ किया मैंने अपने देश के लिए
अपने जीवन का एक-एक पल जीया अपने देश के लिए
अब मेरे हिन्दुस्तान को संवारो और सम्भालो तुम…….
देश के दुश्मनों से मेरे देश को बचा लो तुम……………….
मेरे भारत को फिर विश्व गुरु बनाना है तुम्हें
भारत को फिर दुनिया का सिरमौर बनाना है तुम्हें
जो सपने मैंने अपने भारत के लिए देखे हैं………….
उन सपनों को सच कर दिखाना है तुम्हें………………
याद रखो, जो देशभक्त हो वही हिंदु या मुसलमान होता है
जो गद्दार हो, वो तो बस गद्दार होता है… इस धरती पर भार होता है
हर गली-मुहल्ले में देशभक्ति की अलख जगा दो तुम…..
हर देशभक्त को अब्दुल कलाम बना दो तुम………………..
→ अभिषेक मिश्र
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3rd Poem: आजादी की मध्यरात्रि
आजादी के छह दशक बीते, पर अब तक सूरज उगा नहीं
कहने को हम आजाद हो गए, पर पूर्ण स्वराज मिला नहीं
लक्ष्मीबाई की धरती में, माँ-बेटियाँ अब भी सुरक्षित नहीं
ऋषियों की इस तपोभूमि में, हर कोई अब भी शिक्षित नहीं
शास्त्री-सुभाष की मृत्यु का सत्य देश से छुपाया गया है
और मुगलों का इतिहास, बच्चों को रटाया गया है
हिन्दुओं को जाति, भाषा और रोटी के नाम पर लड़ाया जा रहा है
और अहिंसा के नाम पर जनता को कायर बनाया जा रहा है
सैनिक देश की आजादी बचा रहे हैं, और अहिंसा का गुण गाया जा रहा है
अर्धसत्य बेचा जा रहा है, और लोगों से सच को छुपाया जा रहा है
देश के कर्णधार खो गए हैं कहीं, जागने से पहले सो गए हैं कहीं
क्रांति की मशाल बुझ गई है, और अब तारणहार कोई भी नहीं
क्रांतिकारियों को भुला दिया गया है, एक व्यक्ति को आजादी का जनक बना दिया गया है
लाखों परिवारों के त्याग को भुला दिया गया है, एक परिवार को सबसे बड़ा बना दिया गया है
हिंदुत्व की जन्मभूमि में हिंदु धर्म को साम्प्रदायिक बताया जा रहा है
धर्मनिर्पेक्षता के नाम पर हिन्दुओं को धर्म विमुख बनाया जा रहा है
यही सही वक्त है देशभक्तों के जगने का
देश के लिए इसके बेटों के जीने-मरने का
यही सही वक्त है, सोए देश को नींद से जगाने का
यही सही वक्त है, आजादी को सच्चे अर्थों में पाने का
yahi यही सही वक्त है, विश्व गुरु बन जाने का
यही सही वक्त है, दुनिया को फिर से राह दिखाने का
yahi यही सही वक्त है, एक साधारण मानव से कर्मवीर बन जाने का
यही सही वक्त है, क्रांति की मशाल को फिर से जलाने का
– अभिषेक मिश्र ( Abhi )
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4th poem: मुक्ति पर्व
आज राष्ट्र का मुक्ति-पर्व है जागो कवि की वाणी;
फूंको शंख विजय का, जय हो भारत-भूमि भवानी !
फूलो फूल, लताओ झूमो, अम्बर बरसो पानी;
मन-मयूर नाचो रे आई प्रिय स्वतन्त्रता रानी !!
वह स्वतन्त्रता जिसकी खातिर जूझी लक्ष्मी रानी;
वीर पेशवा नाना ने कर दिया खून का पानी।
तांत्या टोपे ने जिसकी असली कीमत पहिचानी;
लड़ा गया संग्राम गदर का जिसकी अमर कहानी ॥
वह स्वतन्त्रता जिसकी खातिर बिस्मिल थे शैदाई;
जूझ गए आज़ाद पार्क में डटकर लड़ी लड़ाई।
फाके किए यतीन्द्रनाथ ने, मारे गए कन्हाई;
भगतसिंह ने हंसते-हंसते खुलकर फांसी खाई॥
वह स्वतन्त्रता जिसकी खातिर बापू जग में आए;
मुक्ति-युद्ध के लिए जिन्होंने नये शास्त्र अपनाए।
राष्ट्रपिता के इंगित पर दी भारत ने कुर्बानी;
साठ वर्ष तक लड़े सिपाही दिन और रात न जानी॥
वह स्वतन्त्रता जो कि हमें प्राणों से भी प्यारी थी;
vah वह स्वतन्त्रता जिसके हित डांडी की तैयारी थी।
वह स्वतन्त्रता जिसकी खातिर असहयोग अपनाया;
मिट्टी में मिल गए किन्तु झण्डे को नहीं झुकाया॥
बयालीस के वीर बागियो, जान खपाने वालो;
‘करो-मरो’ के महायज्ञ में गोली खाने वालो !
जेल-यातना सहने वालो सत्त्व गंवाने वालो;
विजय तुम्हारे घर आई है आओ इसे सम्हालो॥
उन्हें राष्ट्र का नमस्कार जो काम देश के आए;
सेवक बनकर रहे चने तसलों में रखकर खाए।
भारत उनका ऋणी जिन्होंने हंसकर कष्ट उठाए;
सदा कर्मरत रहे नाम अखबारों में न छपाए॥
नेताजी तुम कहां छिपे हो ? याद तुम्हारी आती;
भारत के बच्चे-बच्चे की भर-भर आती छाती।
‘दिल्ली चलो’ तुम्हारा नारा देखो पूर्ण हुआ है;
परदेशी का भाग्य-सितारा पिसकर चूर्ण हुआ है॥
उठो बहादुरशाह कब्र से किला लौट आया है;
हटा यूनियन जैक, तिरंगा उस पर लहराया है।
औंधे तम्बू अंग्रेजों के, पड़ी बैरकें खाली;
तेरी दिल्ली आज मनाती घर-घर खुशी दिवाली॥
सुनो तिलक महाराज ! स्वर्ग में भारत के जयकारे;
तुम्हें जेल में रखनेवाले खुद लग गए किनारे।
जन्मसिद्ध अधिकार हमारा हमने छीन लिया है;
ब्रिटिश सल्तनत के तख्ते को तेरह-तीन किया है॥
सदियों पीछे आज जमाना ऐसा शुभ आया है;
जब अशोक का चक्र पुनः भारत में फहराया है;
जबकि हिमालय का सिर ऊंचा गंगा गौरव गाती;
जब भारत की जनता जय नेहरू, पटेल की गाती ॥
मुक्त पवन में सांस ले रहे हैं अब भारतवासी;
पूरब में प्रकाश फैला है स्वर्णिम उषा प्रकाशी।
भारतवर्ष स्वतन्त्र हुआ है गाओ नया तराना;
नया एशिया जागा है अब बदला नया ज़माना॥
– गोपाल प्रसाद व्यास
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5th Poem: उठो जवान देश की वसुंधरा पुकारती.
उठो जवान देश की वसुंधरा पुकारती
देश है पुकारता पुकारती माँ भारती
रगों में तेरे बह रहा है खून राम श्याम का
जगदगुरु गोविंद और राजपूती शान का
तू चल पड़ा तो चल पड़ेगी साथ तेरे भारती
देश है पुकारता पुकारती माँ भारती ||
उठा खडग बढा कदम कदम कदम बढाए जा
कदम कदम पे दुश्मनो के धड़ से सर उड़ाए जा
उठेगा विश्व हांथ जोड़ करने तेरी आरती
देश है पुकारता पुकारती माँ भारती ||
तोड़कर ध्ररा को फोड़ आसमाँ की कालिमा
जगा दे सुप्रभात को फैला दे अपनी लालिमा
तेरी शुभ कीर्ति विश्व संकटों को तारती
देश है पुकारता पुकारती माँ भारती ||
है शत्रु दनदना रहा चहूँ दिशा में देश की
पता बता रही हमें किरण किरण दिनेश की
ओ चक्रवती विश्वविजयी मात्र-भू निहारती
देश है पुकारता पुकरती माँ भारती ||
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6th Poem: सच्चा वीर बना दे माँ
सच्चा वीर बना दे माँ-सच्चा वीर बना दे माँ
ध्रुव जैसी मुझे भक्ति दे दे-अर्जुन जैसी शक्ति दे दे
गीता ज्ञान सुना दे माँ -सच्चा वीर बना दे माँ ||
वीर हक़ीकत मैं बन जाऊँ- धर्म पे अपना शीश कटाऊँ
ऐसी लगन लगा दे माँ-सच्चा वीर बना दे माँ ||
गूऱू गोविन्द सा त्यागी बना दे-शिवाजी जैसी आग लगा दे
हाँथ तलवार थमा दे माँ -सच्चा वीर बना दे माँ ||
केशव सा ध्येयनिष्ठ बना दे-माधव सा मुझे ज्ञान करा दे
जीवन देश पे चढ़ा दे माँ-सच्चा वीर बना दे माँ ||
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7th Poem:
मातृ भू के पुत्र वीर हम, दुश्मनो को दें खदेढ़ हम
देश रक्षा करें,धर्म रक्षा करें, युद्ध में न पीछे हटें ||
राष्ट्र को ही देव मानकर चले हैं हम,यही एक राष्ट्र धर्म जानते है हम
स्वतंत्र देश की महान यह परम्परा, रक्त सींच कर पवित्र हो गयी धरा
सिंधु को पार कर, हाथ संगीन ले, ध्येय मार्ग पर हैं हम बढ़े ||
मातृ भू के पुत्र वीर हम, दुश्मनो को दें…………………….
बढ़ रहे आज हम तूफान ले चले, वीर शिवाजी के रणबांकुरे चले
वीर पुत्र युद्ध भूमि से कभी हटे, शत्रुओं को मारकर फिर स्वय कटे
विघ्न मे कूद कर, सिंह से हम बढ़े, मौत दर के पीछे हटे ||
मातृ भू के पुत्र वीर हम, दुश्मनो को दें…………………….
बढ़े कदम रुके न हम वीर मंत्र लें, कार्य की ध्वजा अखण्ड साथ ले चले
विजय घोष गर्जना दिशा हिला गयी, अजेय हम सदा हमें विजय ही मिल गयी
मातृ भू के लिए, प्राण जाएँ भले, अब कदम न पीछे हटें
मातृ भू के पुत्र वीर हम, दुश्मनो को दें खदेढ़ हम
देश रक्षा करें,धर्म रक्षा करें, युद्ध में न पीछे हटें || - Patriotic poems in Hindi by famous poets देशभक्ति कविताएँ desh bhakti kavita
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