बेरोजगारी पर कविता – Poem On Berojgari Ki Samasya in Hindi
बेरोजगारी पर कविता – Poem On Berojgari Ki Samasya in Hindi
- बेरोजगारी
- अरे ओ, जीवन से निराश योद्धाओ सुनो,
सड़क पर भटकते बेरोजगारों सुनो
अँधेरे से निकलेने को कुछ कर्म तो करो ।
अपनी स्थिती को मानकर कुछ शर्म तो करो।
कब तक कोसते रहोगे तुम,अपने सरकार को ?
क्या भुला दोगे तुम दुनिया के तिरस्कार को?
दुर्भाग्य से निकलने का जतन तो करो।
अपनी धड़कनों को समझने का प्रयत्न तो करो।
माँ को ढेरों तमन्ना थी,तेरे जन्म के बाद,
पिता ने देखे थे सपने दशकों बाद,
उनके ख्वाबों को आँखों में जगह तो दो।
संभल जायेंगे पाँव तेरे पहले सतह तो दो।
जन्म लेना, मर जाना, नियती है संसार की,
सोचा कभी, क्या वजह थी ? तेरे अवतार की,
मिट्टी हो जाएगी सोना, तुम स्पर्श तो करो।
कर रही इंतजार मंजिल, तुम संघर्ष तो करो। – प्रभात कुमार
- वक्त कितना लगता है
- वक्त कितना लगता है,
दर्द को असहनीय बनने में,
वक्त कितना लगता हैं,
श्रेष्ट को कनीय बनने में,
अपनी जिंदगी से कभी
मत हारना क्योंकि
वक्त कितना लगता है
सड़क छाप को माननीय बनने में
वक्त कितना लगता है
इज्जत को तमाशा बनने में,
वक्त कितना लगता है
आशा को निराशा बनने में,
हमारी गलती है कि हम
प्रयास छोड़ देते हैं वरना
वक्त कितना लगता है
अज्ञानता को जिज्ञासा बनने में,
वक्त कितना लगता है
रिश्तों को टूट जाने में,
वक्त कितना लगता है
अपनों से छूट जानें में,
वाकिफ सब हैं
समाज के नियमों से मगर
वक्त कितना लगता है
समाज से दूर होने में। – प्रभात कुमार
vakt kitana lagata hai,
dard ko asahaneey banane mein,
vakt kitana lagata hain,
shresht ko kaneey banane mein,
apanee jindagee se kabhee
mat haarana kyonki
vakt kitana lagata hai
sadak chhaap ko maananeey banane mein
vakt kitana lagata hai
ijjat ko tamaasha banane mein,
vakt kitana lagata hai
aasha ko niraasha banane mein,
hamaaree galatee hai ki ham
prayaas chhod dete hain varana
vakt kitana lagata hai
agyaanata ko jigyaasa banane mein,
vakt kitana lagata hai
rishton ko toot jaane mein,
vakt kitana lagata hai
apanon se chhoot jaanen mein,
vaakiph sab hain
samaaj ke niyamon se magar
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