Poem On Childhood in Hindi – बचपन पर हिन्दी कविता
बचपन पर हिन्दी कविता – Poem On Childhood in Hindi Bachpan
- वो बचपन का दौर जो बीता
जिंदगी का सबसे पल था वो मीठा
कितनी प्यारी लगती थीं दादी और नानी
जो हमको सुनाती थीं किस्से और कहानी
छोटी सी खुशीयों में हँसना रो देना चोट जो लगी
घरवाले भी हमसे करते थे दिल्लगी
कहते मीठा फिर खिलाते जो तीखा
वो बचपन का दौर जो बीता
जिंदगी का सबसे पल था वो मीठा
कभी बनना था डॉक्टर कभी बनना था शायर
पल हर पल बदलते थे सपने
कोई थे भैया, कोई थे चाचा
हर कोई जैसे हों अपने
छोटी सी मुश्किल में चेहरा होता जो फीका
वो बचपन का दौर जो बीता
जिंदगी का सबसे पल था वो मीठा
पापा से डरना पर माँ से जो लड़ना
करके गुस्ताखी फिर उलझन में पड़ना
ना कोई गम था ना कोई डर था
बस खेल-खिलौनों का फिक़र था
बचपन का हर पल होता है अनूठा
वो बचपन का दौर जो बीता
जिंदगी का सबसे पल था वो मीठा
By -Amit chauhan.
-
वो बचपन की बस्ती
- वो बचपन की बस्ती, मासूमियत भरी मस्ती!!
जब खुशियाँ थी सस्ती, अपनो का प्यार
अनोखा सा वो संसार, सपनों की बहती थी जहाँ कश्ती
अपनी खुशबू से अनजान, कस्तूरी-हिरण सी वो हस्ती
वो बचपन की बस्ती, मासूमियत भरी मस्ती!!
आँखों में चमक, अंदाज में धमक
खिलखिलाहट से गुंज उठती थी खनक
बातों में होती थी चहक, अपनेपन की खास महक
वो बचपन की बस्ती, मासूमियत भरी मस्ती!!
सवालों के ढेर, खेलने के फेर
किसी से नहीं होता था कोई बैर
शिकवे-शिकायतों की आती ना थी भाषा
ना था अपने-पराए का भेद जरा सा
वो बचपन की बस्ती, मासूमियत भरी मस्ती!!
छोटी-छोटी चीजों में खुशियाँ थी बड़ी-बड़ी
हर काम में मिलती थी शाबाशियाँ घड़ी-घड़ी
ना था कोई परेशानीयों का मेला;
ना जिम्मेदारियों का था झमेला
वो बचपन की बस्ती, मासूमियत भरी मस्ती!!
लगाई जाती थी जब तरकीबें नई-नई
कारस्तानियों की लग जाती थी झरी
भोली सी शैतानियाँ, अल्हड़ सी नादानियाँ
दादी-नानी से सुनी जाती थी कहानियाँ
सच लगती थी जिनकी सारी जुबानियाँ
वो बचपन की बस्ती, मासूमियत भरी मस्ती!!
कुदरती वो खूबसूरती ढूंढते है आज खुद में सभी
वक्त के बदलते करवटों के साथ बदलता गया एहसास
पर आज भी है वो बचपन बड़ा खास, दिल के पास
वो बचपन की बस्ती, मासूमियत भरी मस्ती!!- ज्योति सिंहदेव
-
वो बीते पल
ढ़ूंढ़ता रहा हूँ मैं,वो बीते पल।
वो मस्तीयाँ,वो बचपन।
सफर था सुहाना,थी मदहोशियाँ।
ना कोई मंजिल,ना कोई गम।
ढूँढ़ता रहा हूँ मैं….
सासों से बन्धी,थी वो यारियां।
लड़ते-झगड़ते,यूं पड़ होती ना दूरियां।
थे साथ हम,बन हम सफर।
कहां गये वो जाने चमन।
ढूँढ़ता रहा हूँ मैं….
पलके,बिछाए रखा हूँ अपना।
रैनों में,मिलने का आता है सपना।
खफा है अभी भी,वो शायद।
तड़पता है फिर भी,मेरा पागल मन।
ढूँढ़ता रहा हूँ मैं….
– गौतम गोविन्द
G. Govind
-
vo bachapan ka daur jo beeta
jindagee ka sabase pal tha vo meetha
kitanee pyaaree lagatee theen daadee aur naanee
jo hamako sunaatee theen kisse aur kahaanee
chhotee see khusheeyon mein hansana ro dena chot jo lagee
gharavaale bhee hamase karate the dillagee
kahate meetha phir khilaate jo teekha
vo bachapan ka daur jo beeta
jindagee ka sabase pal tha vo meetha
kabhee banana tha doktar kabhee banana tha shaayar
pal har pal badalate the sapane
koee the bhaiya, koee the chaacha
har koee jaise hon apane
chhotee see mushkil mein chehara hota jo pheeka
vo bachapan ka daur jo beeta
jindagee ka sabase pal tha vo meetha
paapa se darana par maan se jo ladana
karake gustaakhee phir ulajhan mein padana
na koee gam tha na koee dar tha
bas khel-khilaunon ka phiqar tha
bachapan ka har pal hota hai anootha
vo bachapan ka daur jo beeta
jindagee ka sabase pal tha vo meetha
by -amit chhauhan.
.