दशहरा पर कविता – Poem on Dussehra in Hindi
दशहरा पर कविता – Poem on Dussehra in Hindi Dussehra Kavita
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दशहरा
कहने लगी ये बूढ़ी नानी,
आओ बच्चों सुनो कहानी।
कैसे हुई अच्छाई की जीत
और बुराई की हार?
क्यों मनाते हैं भला हम
दशहरे का त्योहार?
एक थे राम बड़े सुंदर
अयोध्या के राजकुमार।
अपनी पत्नी सीता से
करते थे बहुत प्यार।
यों तो थे वो न्यायप्रिय,
पूरी प्रजा के दुलारे।
लेकिन पिता का वचन निभाने,
गए वनवास बेचारे।
भाई लक्ष्मण और सीता सहित,
वह वन की ओर चले।
कठोरताओं का करते सामना,
जो थे राजमहल में पले।
एक था राक्षसराज रावण
बड़ा अन्यायी और अहंकारी।
पर था वो शक्तिमान बहुत,
उससे देवो की सेना भी हारी।
एक दिन उसकी बहन
शूर्पनखा आई वन में।
सुंदर राम लक्ष्मण को देख,
हो गई मोहित मन में।
राम से किया विवाह का आग्रह,
रूप सुंदर सा धर के।
राम ने कहा मैं बंधा हूँ सुंदरी,
विवाह सीता से कर के।
क्रोधित हो किया सीता पर आक्रमण,
ले नाखून काले काले।
लक्ष्मण ने किया बचाव और उसके ,
नाक कान काट डाले।
रोती गयी वह रावण के पास,
सब हाल अपना सुनाया।
देख कर यह हाल बहन का,
रावण गुस्से से तिलमिलाया।
शूर्पनखा ने रावण को सीता के,
सौंदर्य का गुणगान सुनाया।
बदला लेने को रावण उद्यत हो कर,
छल से सीता को हर लाया।
राम विलाप कर रहे दुख में
वन वन सिया को ढूंढने लगे।
वहीं वन में जा कर उनको,
हनुमान और सुग्रीव मिले।
वानरों की सहायता से हनुमान ने,
सीता का पता लगाया।
लौटते वक्त लंका भी जला दी
बहुत उत्पात मचाया।
रावण का था भाई विभीषण,
उसने रावण को सत्य पथ दिखलाया।
क्रोधित हो कर रावण ने उसको ,
लंका से बाहर का मार्ग दिखलाया।
साहस और बुद्धि से कार्य असम्भव
वानरों ने सम्भव कर दिखाया।
नल और नील थे दो कुशल बुद्धि,
समुद्र पर पत्थर से पुल बनाया।
ले वानरों की सेना सम्पूर्ण राम,
लंका तट पर आए।
गले से लगाया विभीषण को जो,
उनकी शरण में आए।
जब अंगद का सन्धि सन्देश,
रावण ने अहंकार वश ठुकरा दिया।
वानरों की पूरी सेना के संग,
धावा लंका पर राम ने बोल दिया।
तेरह दिनों तक चला युद्ध
कई राक्षस और वानर ढेर हुए।
मेघनाद और कुम्भकर्ण आदि
सारे राक्षसवीर भी ढेर हुए।
आया रावण फिर युद्ध में
ले तंत्र मंत्र और अस्त्र शस्त्र सब भारी।
युद्ध करने लगे उससे राम
देवों के दिए रथ की किए सवारी।
जितनी बार सिर काटते थे राम,
एक नया सिर उग आता था।
किसी भी अस्त्र शस्त्र से रावण ,
मारा ही नहीं जाता था।
विभीषण ने बताया राम को ,
कैसे हो रावण की हार।
नाभि में है अमृत कलश प्रभु,
वहीं कीजिए आप वार।
ले कर धनुष बाण फिर राम ने
की नाभि पर चोट।
कटे पेड़ के समान रावण,
गया भूमि पर लोट।
रावण की हार की ये कहानी,
हमें है ये सिखाती।
कितनी भी हो भयंकर बुराई सदा,
सच्चाई से हार है जाती।
इसीलिए अब तक रावण का
हम पुतला हैं जलाते।
सच्चाई की जीत की खुशी में,
हम हैं दशहरा मनाते।
– अंशु प्रिया (Anshu priya) - आपको यह कविता (Poem on dussehra in hindi) कैसी लगी हमें जरुर बताएँ.
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