नारी शक्ति पर कविता – Poem On Nari Shakti in Hindi – Nari Shakti Par Kavita :

Poem On Nari Shakti in Hindi – नारी शक्ति पर कविता
नारी शक्ति पर कविता - Poem On Nari Shakti in Hindi - Nari Shakti Par Kavita

Poem On Nari Shakti in Hindi

  • नारी

  • पगडंडियों से रास्ते हो, या मरुस्थल सी जमीन,
    फिर भी कदम न रुकते हैं, वो सर पे मटकी लिए जो नारी है,
    देखो उसके बदन कभी न थकते हैं।
    वो लकड़ी लेने घर से दूर चली जाती है,
    हाँ , काम करने की उसे पूरी आजादी है।
    किसी रोज जो उसके पाँव में कांटे चुभ जाते हैं,
    वो कहती है, “पिया” लकड़ी लाने की आज तुम्हारी बारी है,
    मैं करता हूँ प्यार तुमसे , ऐसा कह “पिया” रोज उन्हें ठगते हैं।
    वो सर पे मटकी लिए जो नारी है,
    देखो उसके बदन कभी न थकते हैं।
    आंधी हो या तूफां , उसे हर रोज काम करना है,
    क्योंकि , अपने भूखे बच्चे का पेट उसे जो भरना है।
    करती है, बड़े प्यार से आदर-सत्कार भी,
    अतिथि जो उसके घर कभी आ जाया करते हैं।
    वो सर पे मटकी लिए जो नारी है,
    देखो, उसके बदन कभी न थकते हैं।।
    – हिमांशु शर्मा ‘हेमु’

  • स्त्री
    जिसका नहीं था कोई निश्चित ठिकाना,
    आखिर तूने क्यों सोचा नारी को  बनाना?
    तूने सिखाया उसे दूसरों के लिए जीना, दूसरों के लिए मरना,
    परंतु खुद के लिए नहीं कभी सोचना!
    सच तो ये है कि स्त्री पुरूष दोनों ही हैं जग के आधार,
    फिर क्यों समझा जाता है एक को बेकार?
    जिसने दूसरों के लिए सब लुटाया,
    उसे ही किसी ने न अपनाया!
    कभी मायके में कहा पराई,
    तो कभी ससुराल में पराये घर से आई!
    सच कहूँ उपर वाले ये तेरी गलती नहीं है,
    ये कुरीति तो इस पुरूषवादी समाज की उपज है!
    अब तो लगता ही नहीं की नारी हैं हम,
    क्योंकि एक वस्तु जैसी बना दी गई हैं हम!
    जिसने जब चाहा जैसे चाहा हमारा उपयोग किया,
    जी उब जाने पर……
    चाय में गिरी मक्खी की तरह निकाल के फेंक दिया!
    आखिर हमारे साथ ही ऐसा क्यूँ????
    क्योंकि हम नारी हैं??
    – नमिता कुमारी ( एम. ए. प्रथम वर्ष)

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