साली पर कविता, साला पर कविता Poem On Sali in Hindi – Sala Par Kavita lines :

poem on sali in hindi – साली पर कविता साली पर कविता, साला पर कविता Poem On Sali in Hindi - Sala Par Kavita lines

साली पर कविता, साला पर कविता Poem On Sali in Hindi – Sala Par Kavita lines


  • Poem On Sali in Hindi

    साली क्या है रसगुल्ला है – गोपालप्रसाद व्यास

    तुम श्लील कहो, अश्लील कहो
    चाहो तो खुलकर गाली दो !
    तुम भले मुझे कवि मत मानो
    मत वाह-वाह की ताली दो !
    पर मैं तो अपने मालिक से
    हर बार यही वर माँगूँगा-
    तुम गोरी दो या काली दो
    भगवान मुझे इक साली दो !
    सीधी दो, नखरों वाली दो
    साधारण या कि निराली दो,
    चाहे बबूल की टहनी दो
    चाहे चंपे की डाली दो।
    पर मुझे जन्म देने वाले
    यह माँग नहीं ठुकरा देना-
    असली दो, चाहे जाली दो
    भगवान मुझे एक साली दो।
    वह यौवन भी क्या यौवन है
    जिसमें मुख पर लाली न हुई,
    अलकें घूँघरवाली न हुईं
    आँखें रस की प्याली न हुईं।
    वह जीवन भी क्या जीवन है
    जिसमें मनुष्य जीजा न बना,
    वह जीजा भी क्या जीजा है
    जिसके छोटी साली न हुई।
    तुम खा लो भले प्लेटों में
    लेकिन थाली की और बात,
    तुम रहो फेंकते भरे दाँव
    लेकिन खाली की और बात।
    तुम मटके पर मटके पी लो
    लेकिन प्याली का और मजा,
    पत्नी को हरदम रखो साथ,
    लेकिन साली की और बात।
    पत्नी केवल अर्द्धांगिन है
    साली सर्वांगिण होती है,
    पत्नी तो रोती ही रहती
    साली बिखेरती मोती है।
    साला भी गहरे में जाकर
    अक्सर पतवार फेंक देता
    साली जीजा जी की नैया
    खेती है, नहीं डुबोती है।
    विरहिन पत्नी को साली ही
    पी का संदेश सुनाती है,
    भोंदू पत्नी को साली ही
    करना शिकार सिखलाती है।
    दम्पति में अगर तनाव
    रूस-अमरीका जैसा हो जाए,
    तो साली ही नेहरू बनकर
    भटकों को राह दिखाती है।
    साली है पायल की छम-छम
    साली है चम-चम तारा-सी,
    साली है बुलबुल-सी चुलबुल
    साली है चंचल पारा-सी ।
    यदि इन उपमाओं से भी कुछ
    पहचान नहीं हो पाए तो,
    हर रोग दूर करने वाली
    साली है अमृतधारा-सी।
    मुल्ला को जैसे दुःख देती
    बुर्के की चौड़ी जाली है,
    पीने वालों को ज्यों अखरी
    टेबिल की बोतल खाली है।
    चाऊ को जैसे च्याँग नहीं
    सपने में कभी सुहाता है,
    ऐसे में खूँसट लोगों को
    यह कविता साली वाली है।
    साली तो रस की प्याली है
    साली क्या है रसगुल्ला है,
    साली तो मधुर मलाई-सी
    अथवा रबड़ी का कुल्ला है।
    पत्नी तो सख्त छुहारा है
    हरदम सिकुड़ी ही रहती है
    साली है फाँक संतरे की
    जो कुछ है खुल्लमखुल्ला है।
    साली चटनी पोदीने की
    बातों की चाट जगाती है,
    साली है दिल्ली का लड्डू
    देखो तो भूख बढ़ाती है।
    साली है मथुरा की खुरचन
    रस में लिपटी ही आती है,
    साली है आलू का पापड़
    छूते ही शोर मचाती है।
    कुछ पता तुम्हें है, हिटलर को
    किसलिए अग्नि ने छार किया ?
    या क्यों ब्रिटेन के लोगों ने
    अपना प्रिय किंग उतार दिया ?
    ये दोनों थे साली-विहीन
    इसलिए लड़ाई हार गए,
    वह मुल्क-ए-अदम सिधार गए
    यह सात समुंदर पार गए।
    किसलिए विनोबा गाँव-गाँव
    यूँ मारे-मारे फिरते थे ?
    दो-दो बज जाते थे लेकिन
    नेहरू के पलक न गिरते थे।
    ये दोनों थे साली-विहीन
    वह बाबा बाल बढ़ा निकला,
    चाचा भी कलम घिसा करता
    अपने घर में बैठा इकला।
    मुझको ही देखो साली बिन
    जीवन ठाली-सा लगता है,
    सालों का जीजा जी कहना
    मुझको गाली सा लगता है।
    यदि प्रभु के परम पराक्रम से
    कोई साली पा जाता मैं,
    तो भला हास्य-रस में लिखकर
    पत्नी को गीत बनाता मैं?


  • Sala Par Kavita

    साला ही गरम मसाला है / गोपालप्रसाद व्यास

    हे दुनिया के संतप्त जनो,
    पत्नी-पीड़ित हे विकल मनो,
    कूँआ प्यासे पर आया है
    मुझ बुद्धिमान की बात सुनो!
    यदि जीवन सफल बनाना है
    यदि सचमुच पुण्य कमाना है,
    तो एक बात मेरी जानो
    साले को अपना गुरु मानो!
    छोड़ो मां-बाप बिचारों को
    छोड़ो बचपन के यारों को,
    कुल-गोत्र, बंधु-बांधव छोड़ो
    छोड़ो सब रिश्तेदारों को।
    छोड़ो प्रतिमाओं का पूजन
    पूजो दिवाल के आले को,
    पत्नी को रखना है प्रसन्न
    तो पूजो पहले साले को।
    गंगा की तारन-शक्ति घटी
    यमुना का पानी क्षीण हुआ,
    काशी की करवट व्यर्थ हुई
    मथुरा भी दीन-मलीन हुआ।
    अब कलियुग में ससुराल तीर्थ
    जीवित-जाग्रत पहचानो रे!
    यदि अपनी सुफल मनानी है
    साले को पंडा मानो रे!
    इस भवसागर से तरने को
    साला ही तरल त्रिवेणी है,
    भव-बाधाओं पर चढ़ने को
    साला मजबूत नसैनी है।
    गृह-कलह-कष्ट काटन के हित
    साला ही तेज कतरनी है,
    पत्नी-भक्तों की माला में
    साला ही श्रेष्ठ सुमरनी है।
    इस अग-जग के अंधियारे में
    साला ही सिर्फ उजाला है,
    विधना की कौतुक रचना में
    साले का ठाठ निराला है।
    साला ही सुख की कुंजी है,
    पत्नी तो केवल ताला है,
    भाई हो सकता ढाल मगर
    साला तो पैना भाला है।
    वह जिस उर में छिद गया
    प्राण उसके ही हरने वाला है,
    वह जिस घर में घुस गया
    वहां से नहीं निकलने वाला है।
    इसलिए जगत के जीजाओ,
    अब अपनी खैर मनाओ तुम
    दुनिया में सुख से रहना है
    साले को शीश नवाओ तुम।
    यदि साले से परहेज किया
    तो हरदम साले जाओगे,
    जिंदगी कोफ्त हो जाएगी
    तुम बड़े कसाले जाओगे।
    साड़ियां फटेंगी रोज-रोज
    बंदर बर्तन ले जाएंगे,
    हर रोज दर्द सिर में होगा
    तुम दवा कहां से लाओगे?
    हफ्तों तक उनकी जीजी से
    बातों में मेल नहीं होगा,
    चेहरे पर चमक नहीं होगी
    बालों में तेल नहीं होगा।
    दालों में कंकर निकलेंगे
    सब्जी में होगा नमक तेज,
    घरनी की कृपा बिना घर में
    रहना कुछ खेल नहीं होगा।
    इसलिए भाइयो, मत नाहक
    अपनी ताकत अजमाओ रे!
    देवी जी से लेकर सलाह
    साले को घर ले आओ रे!
    तुम स्वयं बैठ जाओ नीचे
    आसन पर उसे बिठाओ रे!
    खुद पानी पर संतोष करो
    साले को दूध पिलाओ रे!
    तुम केवल ‘हाँ’ कहना सीखो
    मत ‘ना’ जुबान पर लाओ रे!
    अपने कमीज सींकर पहनो
    साले को सूट सिलाओ रे!
    वाणी में मिश्री घोल चलो
    मीठे ही बोल सुनाओ रे!
    दादा को चाहे डैम कहो
    साले को डियर बताओ रे!
    साले को गैर नहीं मानो
    साले को समझो जिगरी रे!
    साले को गाली मत मानो
    मानो बी0 ए0 की डिगरी रे!
    साले के परम पराक्रम को
    अब तक किस कवि ने कूता है!
    ए डाक्टरेट लेने वालो!
    देखो, यह विषय अछूता है।
    कुछ सोचा है इस चंदा का
    छाया किसलिए उजाला है?
    शंकर भोले ने इसे किसलिए
    अपने शीश बिठाला है?
    क्यों आसमान पर चढ़ा हुआ
    क्यों इसका रुतबा आला है?
    यह भी लक्ष्मी का भाई है
    भगवान विष्णु का साला है।
    यह तो सब लोग जानते हैं
    कान्हा गोकुल के ग्वाले थे,
    मक्खन तक चोरी करते थे
    सूरत से बेहद काले थे।
    पर, इसीलिए इस दुनिया ने
    पूजा भगवान मान करके
    गांडीव धनुर्धर पराक्रमी
    योद्धा अर्जुन के साले थे।
    क्या कहें कि हम तो जीवन में
    यारो किस्मत वाले न हुए,
    कोरे बामन के बैल रहे
    धनवानों के लाले न हुए।
    हम हुए अकेले ही पैदा
    भाई-बहनों वाले न हुए,
    जिंदगी हाय बेकार गई
    मंत्रीजी के साले न हुए।
    पर गई हमारी जाने दो
    अपनी तो बात बनाओ तुम,
    अपनों के नहीं, दूसरों के
    अनुभव से लाभ उठाओ तुम।
    यदि नहीं नौकरी मिलती है
    या नहीं तरक्की होती है,
    तो जो भी अपना अफसर हो
    साले उसके बन जाओ तुम।
    परमिट मिलने में दिक्कत हो
    ठेके में चांस न आता हो,
    बिजनिस में दाल न गलती हो
    या हर सौदे में घाटा हो।
    तो पूछो नहीं पंडितों से
    फौरन ही टिकट कटाओ रे!
    तुम फौरन दिल्ली आओ रे!
    नुस्खा अचूक अजमाओ रे!
    तुम नहीं किसी को अर्जी दो
    तुम नहीं किसी पर जाओ रे!
    तुम नहीं किसी की बात सुनो
    अपनी भी नहीं बताओ रे!
    कुछ साड़ी लो, कुछ लो मीठा
    कुछ फल लो, लो कुछ फूल-पान,
    लग जाए दांव, आफीसर की
    पत्नी को बहन बनाओ रे!
    बच्चों के मामा बन जाओ
    बच्ची को गोद खिलाओ रे!
    उनकी माता के चरण छुओ
    दादा के पैर दबाओ रे!
    मत खाली हाथ घुसो घर में
    कुछ लाओ रे, कुछ लाओ रे!
    बाबूजी अगर डाँट भी दें
    बोलो मत, पूँछ हिलाओ रे
    यदि इसी तरह चालीस दिवस
    संयम से ध्यान लगाओगे,
    दिन में बे-नागा चार बार
    बाबूजी के घर जाओगे।
    तो स्वयं बहनजी पिघलेंगी
    बहनोई होंगे मेहरबान,
    सच कहता हूँ तुम घर बैठे
    चारों पदार्थ पा जाओगे।
    मैं इसीलिए तो कहता हूँ
    साला पर सबसे आला है,
    हैं और सभी रिश्ते फीके
    साला बस गरम मसाला है।
    खुल गए भाग्य उस जीजा के
    तर गईं पीढ़ियां तीन-तीन
    जिसके घर में होकर प्रसन्न
    साले ने डेरा डाला है।
    नामुकिन जिसको सर करना
    साला वह लोहे का गढ़ है,
    साले की पहुँच दूर तक है
    साले की चूल्हे में जड़ है।
    तुमने भी यह माना होगा
    तुमने भी पहचाना होगा,
    है सकल खुदाई एक तरफ
    जोरू का भाई एक तरफ।

.