2 Poem On Sawan in Hindi सावन पर कविता सावन के गीत monsoon barish manbhavan :

Poem On Sawan in Hindi – सावन पर कविता
Poem On Sawan in Hindi - सावन पर कविता

Poem On Sawan in Hindi

  • बूंद सावन की – 1st Poem On Sawan in Hindi

  • एक बूंद ने कहा, दूसरी बूंद से
    कहां चली तू यूँ मंडराए ?
    क्या जाना तूझे दूर देश है,
    बन-ठन इतनी संवराए
    जरा ठहर ,वो बूंद उसे देख गुर्राई 
    फिर मस्ती में चल पड़ी, वो खुद पर इतराए,
    एक आवारे बादल ने रोका रास्ता उसका,
    कहा क्यों हो तुम इतनी बौराए ?
    ऐसा क्या इरादा तेरा,
    जो हो इतनी घबराए ?
    हट जा पगले मेरे रास्ते से,
    बोली बूंद जरा मुस्काए,
    जो ना माने बात तू मेरी,
    तो दूँ मैं तुझे गिराए,
    चल पड़ी फिर वो फुरफुराए,
    आगे टकराई वो छोटी बूंद से,
    छोटी बूंद उसे देख खिलखिलाए,
    कहा दीदी चली कहां तुम यूं गुस्साए ?
    क्या हुआ झगड़ा किसी से,
    जो हो तुम मुंह फुलाए ?
    कहा सुन छोटी बात तू मेरी,
    जरा ध्यान लगाए,
    मैं तो हूं बूंद सावन की कहे जो तू,
    तो लूँ खुद में समाए,
    बरसे हूं मैं खेत-खलिहानो में,
    ताल-सराबर दूं भरमाए,
    वर्षा बन धरती पर बरसूं,
    प्रकृति को दूं लुभाए,
    लोग जोहे हैं राह मेरी,
    क्यों हूं मै इतनी देर लगाए ?
    सुन छोटी, जाना है जल्दी मुझे,
    दूं मैं वन में मोर नचाए,
    हर मन में सावन बसे हैं,
    जाउं मैं उनका हर्षाए,
    हर डाली सूनी पड़ी है,
    कह आउं कि लो झूले लगाए,
    बाबा बसते कैलाश पर्वत पर,
    फिर भी सब शिवालय में जल चढ़ाए,
    हर तरफ खुशियाँ दिखें हैं,
    दूं मैं दुखों को हटाए,
    पर तुम क्यों उदास खड़ी हो,
    मेरी बातों पर गंभीरता जताए ?
    कहा दीदी ये सब तो ठीक है,
    पर लाती तुम क्यों बाढ कहीं पर कहीं सूखा कहाए ?
    क्या आती नहीं दया थोड़ी भी,
    कि लूं मैं उन्हें बचाय ?
    न-न छोटी ऐसा नहीं है,
    हर साल आती मैं यही बताए,
    प्रकति से न करो छेड़छाड़ तुम,
    यही संदेश लोगों को सिखाए,
    पर सुनते नही बात एक भी,
    किस भाषा उन्हें समझाए ?
    समझ गई मैं दीदी तेरी हर भाषा,
    अब न ज्यादा वक्त गँवाए,
    मैं भी हूं अब संग तुम्हारे,
    चलो अपना संदेश धरती पर बरसाए,
    कर लो खुद में शामिल तुम,
    लो अपनी रुह बसाए,
    आओ चलें दोनों धरती पर,
    इक-दूजे पर इतराए।
    – काजल कुमारी झा.
  • ऐ सावन – 2nd Poem On Sawan in Hindi

  • ऐ सावन, मुझसे लेने और कितने इंतेकाम बाक़ी हैं,
    ऐ सावन, मेरे और कितने इम्तेहान बाकी हैं
    यूँ बरस के दिल की जमीं में ज़हर ना घोल,
    यूं गरज के बरसों की चुप्पियां ना तोड़,
    यादों कुछ कांटो सी चुभती हैं,
    तस्सवुर किसीकी इन बूंदों में दिखती हैं
    अंधेरों का आदि ये ठिकाना रोशनी से डरता है,
    बिजलियों की चमक से भटकता है छिपता है
    फिर भूला सा एक नाम सांसो में ठहरता है,
    ऐसी गरजती बरसती रातों के और कितने इंतेजाम बाकी हैं
    ऐ सावन, मुझसे लेने और कितने इन्तेक़ाम बाकी हैं
    दूर तक वीरानियाँ थी, बस बादलों का शोर था,
    तूफान का इशारा हर ओर था
    फिर इन खाली पन्नो ने मेरी ‘आह’ सुनी,
    दर्द बांट लेने की एक चाह सुनी
    बेशक तन्हा वो मंज़र नहीं था,
    बस उस एक शख्स का साथ मयस्सर नहीं था,
    इस खता-ए-आशिक़ी के हमपर और कितने इल्जाम बाकी हैं
    ऐ सावन, मुझसे लेने और कितने इन्तेक़ाम बाकी हैं…
    – Jaya Pandey
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