गाँव की याद कविता Poem On Village in Hindi
Poem On Village in Hindi – gaon par kavita
-
बदलता गाँव – Village (Hindi Poem)
- मेरे गाँव में अब सावन की हरियाली नहीं बची,
यहाँ की सारी रौनक शहर का रुख कर चली,
यहाँ कागज़ की वो कश्तियाँ सारी डूब पड़ी,
यहाँ की मिट्टी से वो सौंधी खुशबू छूट चली,
अब यहाँ त्योहारों की शोरगुल भी नहीं मिली,
मेरे गांव की सारी गलियाँ अब चुपचाप हो चली,
मेरे गाँव में अब होली की पिचकारियां नहीं बची,
मेरे गाँव में अब दीवाली की किलकारियां नहीं बची,
यहाँ के बसिंदो को शहरों के धूल उड़ा ले गए,
सुन माटी! यहाँ अब वो माटी के लाल नहीं बचे,
इस पुराने बरगद की गोद थी बचपन बिताने के लिए
और वो छुट्टियों के मोहताज हैं अब यहाँ आने के लिए।
– Jaya Pandey ( जया पाण्डेय )
-
मेरा गाँव – Village Poem – gaon par kavita
- गांव छोड़ शहर चले हम
बहुत दूर चले जाएं हम…
अपने गांव और मकान से……
एक दृश्य छाया रहता है आंखों में सामने फीकी पड़ जाती है शहर की रौनके है।
कच्ची गली याद आती है उड़ती धूल याद आती है जिसमें सुबह शाम खेल बढ़े हुए।
शहर का हर शख्स थका हुआ रहता है।
पर ना जाने क्यों अमीरी की होड़ कि बाजार में रहता है।
याद आते हैं वह हरे भरे लहराते खेत…..
जो पवन आते फसल लहराते देख………
मन मुक्त हो जाता है देख छटा हरियाली की
शहर तेरे पास किसी के लिए वक्त नहीं है
पर मेरा गांव वक्त से भरा हुआ है मिलने मिलाने की रसम दर्पण होती है।
देख घटा सावन की मन झूम उठा ठंडी हवा के झोंके से……..
गांव छोड़ शहर चले हम
बहुत दूर चले आए हम
अपने गांव और मकान से…….
– Hansraj Pal
.