पोखरण परमाणु परीक्षण इतिहास Pokhran Nuclear test history in Hindi parmanu

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पोखरण परमाणु परीक्षण इतिहास Pokhran Nuclear test history in Hindi parmanu

  • 11 मई 1998 को भारत ने 3 परमाणु हथियारों का परीक्षण किया. दो दिन बाद और दो परमाणु परीक्षण किए गए. पाँचों परीक्षण सफल रहे.
  • इन सफल परीक्षणों के बाद देश में जश्न का माहौल था.
  • इसके बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र घोषित कर दिया.

  • इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ‘जय जवान, जय किसान’ और ‘जय विज्ञान’ का नारा दिया.
  • इससे पूर्व के परमाणु परीक्षणों के बारे में अमेरिका को भनक लग जाती थी.
  • 24 वर्ष तक इन परीक्षणों को राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में टाला गया. 1998 में वाजपेयी सरकार आई उसने इन परीक्षणों का आदेश दिया.
  • भारत परमाणु सम्पन्न दुनिया का छठा देश बन गया.

  • भारत पहला ऐसा परमाणु शक्ति संपन्न देश बना, जिसने परमाणु अप्रसार संधि ( NPT ) पर हस्ताक्षर नहीं किए थे.
  • NPT ( Treaty on the Non-Proliferation of Nuclear Weapons ) एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, इस समझौते का लक्ष्य परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना और परमाणु हथियारों के खात्मे की ओर कदम बढ़ाना है.
  • परीक्षण के अगले साल 11 मई से भारत सरकार ने ‘रीसर्जेंट इंडिया डे’ मनाने का फैसला किया.
  • CIA को परीक्षण की भनक तक नहीं लगी.
  • राजस्थान में उस दिन सुबह-सुबह आदेश दिए गए. आदेश के बाद ट्रक और बुलडोजर तेजी से स्टार्ट होकर पास के कुछ हाल ही खोदे गए कुओं की ओर बढ़ने लगे. मशीनों की तेज आवाजें आने लगीं.
  • कुएं को बालू से ढंकने में मशीनों का साथ, बेलचा लिए हुए आदमियों ने दिया. और जल्दी ही कुएं में न सिर्फ बालू भर दी गई बल्कि कुओं के ऊपर बालू के छोटे पहाड़ बना दिए गए. उनसे निकले थे मोटे-मोटे तार. कुछ ही देर में तारों में आग लगाई गई और फिर एक तेज विस्फोट हुआ.
  • जिससे मशरूम के आकार का बड़ा सा एक ग्रे रंग का बादल बन गया. 20 लोग उसे आशा के साथ निहार रहे थे. नंगी आंखों से कुछ देखा तो नहीं जा सकता था पर तभी उन वैज्ञानिकों में से एक ने जोर से अपनी मुट्ठी बांधी और तेजी से हवा में लहराते हुए कहा, ‘कैच अस इफ यू कैन’, माने ‘अगर पकड़ सको तो हमें पकड़ो’. इसके बाद तेजी से हंसी के ठहाके लगे. मिशन से सफल हो चुका था.
  • भारतीय सेना की 58 इंजीनियर रेजीमेंट को खासकर इस काम के लिए चुना गया था. इस रेजीमेंट के कमांडेंट थे कर्नल गोपाल कौशिक. इनके संरक्षण में ही भारत के परमाणु हथियारों का परीक्षण किया जाना था. उन्हें इस मिशन को सीक्रेट रखने का काम भी सौंपा गया था.
  • अमेरिका ने पोखरण पर नजर रखने के लिए 4 सैटेलाइट लगाए थे. भारतीय वैज्ञानिकों ने इनके रहते ही ये कारनामा करके दिखाया. इन सैटेलाइट्स के बारे में कहा जाता था कि ये जमीन पर खड़े भारतीय सैनिकों की घड़ी का समय भी देख सकते हैं. CIA ने तो यहां तक झूठ बोल रखा था कि इन सैटेलाइट्स के पास ‘ह्यूमन इंटेलिजेंस’ हैं.
  • इन सबके बावजूद बिना शक होने दिए 58 इंजीनियर डेढ़ साल तक प्रैक्टिस करने में कामयाब रहे. 1982, 1995 और 1997 में वहां पर छोटे-मोटे ब्लास्ट हो चुके थे जिससे अमेरिका को अंदाजा भी हो गया था कि भारतीय परमाणु परीक्षण का प्रयास कर रहे हैं.
  • मई, 1998 में 6 बमों के दस्ते यूज हुए थे. इनमें से आखिरी तीन का नाम ‘नवताल’ रखा गया था. शॉर्ट में NT1, NT2, NT इसमें से केवल 5 ही बम फोड़े गए. NT3 को कुएं से निकाल लिया गया. इसे निकालने का आदेश दिया था, आर. वैज्ञानिक चिदंबरम ने जो एटॉमिक एनर्जी कमीशन (AEC) के चेयरमैन थे.
  • इसके पीछे आर. चिदंबरम का मानना था कि जो रिजल्ट उनकी टीम को चाहिए थे वो उन्हें मिल चुके थे फिर एक और डिवाइस बर्बाद करके क्या फायदा? वाकई उन्होंने टीम से भी इन्ही शब्दों को दोहराते हुए कहा था, ‘इसे बर्बाद करके क्या फायदा?’
  • डीआरडीओ के तत्कालीन चीफ एपीजे अब्दुल कलाम और एईसी के चेयरमैन आर. चिदंबरम इस ऑपरेशन में शामिल दो बड़े वैज्ञानिक थे. साथ ही संस्थाओं के 80 और वैज्ञानिक शामिल थे जो कि परीक्षण स्थल का जायजा लेने आते-जाते रहते थे.
  • सभी को आर्मी की वर्दी में परीक्षण स्थल पर ले जाया जाता था और साथ ही सभी के झूठे नाम रखे गए थे. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान इन लोगों के इतने सारे उपनाम हो चुके थे कि एक बार एक बड़े वैज्ञानिक ने मजाक में कहा था, ‘वैज्ञानिकों के लिए नाम याद करने के बजाए अपने फिजिक्स के कैलकुलेशन करना ज्यादा आसान था.’

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