Prerak Laghu Katha in Hindi Short Prerak Prasang in Hindi – लघुकथा संग्रह
Prerak Laghu Katha in Hindi – लघुकथा
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शीर्षक —–‘अतीत से निरपेक्ष ‘
”मम्मी !”
”हाँ बेटा !”
”अरे मैने पूरा घर छान मारा और आप यहाँ बैठी हो !”
”हाँ बेटा ,अकेली थी इसलिये यहाँ आकर बैठ गयी !”
”आज कोई नई बात थोडे ही है –आप तो पता नहीं रोज अकेली इस समुद्र के किनारे आकर न जाने क्या सोचती रहती हैं ?”
”कौन कहता है कि मैं सोचती हूँ —?अरे बेटा मैं तो यहाँ आकर तन्हा नहीं बल्कि खुद से मुलाकात करती हूँ –बतियाती हूँ खुद से –!”
”अरे मम्मी आप भी न –!”
”खैर छोड तेरी समझ में नहीं आयेगा !”
”मम्मी –!”
”हाँ !”
”आज पापा का फ़ोन आया था !”
अचानक बेटे बासु के मुँह से उसके पापा का नाम सुनकर शालिनी के हिलते हुए पानी में पडे पैर रुक गये ।समुद्र जैसे ठहर सा गया ।वह आश्चर्य से और प्रश्नवाचक नजरों से बासु की ओर देखने लगी।
”माँ पापा कह रहे थे कि वह बहुत शर्मिंदा हैं –वह आपसे माँफी माँगने को तैयार हैं !’
”लेकिन बेटा —?”
”मम्मी मैं जानता हूँ आप पापा से बहुत नाराज हो मगर –!”
”मगर क्या बेटा ?”
”उनसे गलती हुई थी जो वो आपको छोडकर इधर-उधर–!”
”चुप हो जा बासू मैं जानती हूँ कि तू अब बडा हो गया है।तेरा कोलेज भी इस बार पूरा हो जायेगा। मगर तू यह नहीं जानता कि मैने क्या -क्या सहा था ? कैसे तुम दोनो भाईयों को पढाया -लिखाया? क्या तुम चाहते हो कि तुम्हारी माँ फिर उसी घिनावने और डरावने अतीत में वापस चली जाये? –क्या उनके माँफी माँगने से गुजरा वक्त वापस आ जायेगा –?नहीं न! बासु मैं अपने अतीत के निरपेक्ष हो चुकी हूँ भुला चुकी हूँ उस सब को एक डरावना स्वप्न समझकर तुम दोनो को ही मैने अपनी दुनिया मान लिया है प्लीज बेटा —-!” कहकर शालिनी बेटे से लिपटकर रोने लगी
”सौरी मम्मी मैने आपका दिल दुखाया मगर अब वायदा करता हूँ कभी भी आपको फोर्स नहीं करूँगा !” कहकर बासु अपनी माँ के बालों में हाथ फेरने लगा ।
– लेखिका— राशि सिंह
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश
अप्रकाशित एवं मौलिक लघुकथा
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शीर्षक —–‘धिक्कार ‘
”बाबू जी कुछ रुपये दे दो ।मेरा पोता बहुत बीमार है। अस्पताल जाना है ।एक भी पैसा नहीं है मेरे पास ।
एक बुजुर्ग रिक्शे बाले व्यक्ति ने पार्किंग में खडी कार को स्टार्ट करते हुए सुरेश से गिड़गिडाते हुए कहा ।
”अरे जाओ यहाँ से चले आते हैं पता नहीं कहाँ -कहाँ से !”सुरेश ने उस वुजुर्ग को धकियाते हुए कहा और गाडी स्टार्ट कर आगे बढ गया ।जैसे ही गाडी आगे बढी उसके नीचे भाग कर अचानक सुरेश का सात बर्षीय पुत्र रोहित आ गया ।सुरेश ने एकदम ब्रेक लगाये लेकिन रोहित एक तरफ़ गिरकर अचेत हो गया ।
”अरे यह क्या किया बाबूजी ?” कहते हुए उस वुजुर्ग व्यक्ति ने रोहित को सँभाला ।सुरेश बेटे की हालत देखकर बेहोश हो गया। सुरेश की पत्नि बाहर आकर दहाड़ मारकर रोने लगी ।वुजुर्ग ने आव देखा न ताव बच्चे को गोदी में उठाया और सड़क पार बने हुए अस्पताल की ओर भाग गया। डाक्टर ने एकदम रोहित को एडमिट कर लिया। पीछे -पीछे सुरेश और सुनन्दा भी पहुँच गये ।
”अच्छा हुआ समय पर एडमिट करा दिया अब बच्चा ठीक है !” डाक्टर ने बाहर आकर कहा तो सुरेश और सुनन्दा की जान में जान आई ।
सुरेश अस्पताल में चारों ओर उस व्रद्ध व्यक्ति को देख रहा था जिसने आज उसके घर के चिराग को बुझने से बचा लिया परंतु कहीं दिखाई नहीं दिया। खुद को बहुत गरीब और कमजोर सा महसूस कर रहा था सुरेश ।
”धिक्कार है मुझपर मै उसकी सहायता भी चन्द कागज के टुकडो से न कर सका और उसने तो मेरी दुनियाँ ही बचा दी ।लेखिका —राशि सिंह
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शीर्षक — ‘कल्पना लोक ‘
”कल्पना –अरे कहाँ हो भई ?” लोक ने घर में घुसते ही अपनी पत्नि कल्पना को आवाज दी ।
”मै यहाँ हूँ बाथरूम में नहा रही हूँ !”
”अरे यार संडे को तो तुम्हारा पूरा टाईम टेबल ही गड़बडा जाता है ।ग्यारह बज गये अब जल्दी करो भी न ।बाजार भी जाना है ।और सूरज कहाँ है ?”
”अभी आती हूँ !”
”सूरज को मैने उसके मित्र के घर भेज दिया है ।अरे भई एक ही तो दिन मिलता है मुझे आपके साथ घूमने फिरने के लिये उसमें भी सूरज को —न बाबा न !” कल्पना ने तौलिया से अपने गीले बाल सुखाते हुए कहा ।
”कल्पना तुमको हो क्या गया है पूरे हफ़्ते तो वह आया की कस्टडी में रहता है और आज तुमने —!”
”पापा कोई बात नहीं आज मुझे कोई नया गैजेट लाकर दे देना मैं समय बिता लूँगा उसके साथ !” कौने में खडे दस साल के बेटे की बात सुनकर कल्पना और लोक की बोलती बंद हो गयी ।
”बेटा इधर आओ ।”कल्पना ने सूरज को अपने पास आने को कहा लेकिन सूरज बिना कोई उत्तर दिये अपने कमरे में चला गया ।अब वह वहाँ बैठकर पता नहीं कौनसे कल्पना लोक में विचरण करेगा इस बात से अन्जान कल्पना और लोक बाजार चले गये इंजोय करने ,छूट्टी मनाने ।लेखिका —राशि सिंह
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शीर्षक —-‘टूटा तारा ‘
”क्या हुआ तनिष्क?” आँख बंद किये छत पर अकेले खडे अपने पाँच साल के बेटे से ऋतु ने आश्चर्यचकित होते हुए पूँछा ।
”कुछ नहीं मम्मी ,इंतजार कर रहा हूँ
”किसका ?”
”तारा टूटने का !”
”क्यों ?”
”दादी बीमार हैं न ! उनके लिये ।दादी ने मुझे बताया कि अगर तारा टूटे तो जो भी विश माँगोगे पूरी हो जाती है । मासूम तनिष्क ने मासूमियत से कहा सुनकर ऋतु का ह्र्दय आत्मग्लानि से भर गया ।
”एक यह है जो दादी की सलामती के लिये प्रार्थना कर रहा है और एक मैं हूँ जो भगवान से रोज उनके मरने की प्रार्थना करती हूँ ताकि उनकी सेवा नहीं करनी पडे !”ऋतु हाथ जोड़कर तनिष्क के पास ही घुटनो के बल बैठ गयी सासू माँ के स्वास्थ्य की सलामती के लिये ।लेखिका —-राशि सिंह
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शीर्षक —–‘मैली सी माँ ‘
”अरे बेटा सुरेन्द्रररर–!”कमरे के भीतर से किसी बुजुर्ग महिला की कपकपाती सी आवाज आई ।
”जाओ सुनकर आओ अपनी माता श्री की।” सुगन्धा ने नाश्ता करते हुए पति से मुँहे बनाते हुए कहा ।
”हाँ हाँ जा रहा हूँ –जा रहा हूँ तुम भी कभी पूँछ लिया करो उनका हाल -चाल !”
”मैं ,न बाबा न मैं तो उस कमरे की तरफ़ मुँह भी नहीं करती इतनी बदबू आती है छी–।”
”कुछ खाने को दिया या नहीं उनको ?”
”अभी मेड नहीं आई है। आयेगी तब भिजवा दूँगी ।”
”मेरा रुमाल दो यार ।”
”अभी देती हूँ ।”
”लाओ जल्दी ।”सुरेन्द्र ने रुमाल को नाक से बाँधा और भीतर चला गया ।
”हाँ बोलो ।”
”बेटा इस कमरे की लाइट खराब हो गयी है। रात बहुत ठंड लगी ।हीटर भी न चला ।’कमाँ ने रजाई में से मुँह निकाल कर कपकपाते हुए कहा ।
”ठीक है ठीक है आज करबा दूँगा और ज्यादा शोर मत मचाया करो ।सब हो जायेगा ।मेड आती ही होगी ।”
”बेटा थोडी देर बैठ तो सही ।”
”अरे नहीं माँ औफिस के लिये लेट हो रहा हूँ ।यहाँ कहाँ बैठ जाऊँ इतनी तो बदबू आ रही है ?” रुमाल से मुँह ढककर सुरेन्द्र ने कहा और बाहर निकल गया माँ की आँखों में लाचारी के आँसू आ गये बे खुद को सूँघने लगी ”क्या सच में ही मैं मैली हो गयी हूँ ?अभी तो हाथों में सुरेन्द्र के मल-मूत्र की गंध आती है मुझे और वो कह गया की मुझमें दुर्गन्ध?”लेखिका —-राशि सिंह
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शीर्षक —–‘रक्त -रंजित ‘
”आह ! छुओ मत मुझे!” स्नेहा ने आलिंगन में कैद करते पति नितिन को रोकते हुए कहा ।
”क्यों क्या हुआ ?”
”बहुत पीडा हो रही है ।”
”कहाँ ?”
”ह्र्दय में ।”
”यार मजाक मत करो, मैंने तो तुम्हारे एक थप्पड भी नहीं मारा ।
”थप्पड मार देते तो शायद इतना दर्द न होता । मेरी आत्मा इतना नहीं कराहती ,जितना तुम्हारी बातों के तीर ने इसको छलनी करके रख दिया ।
”छोडो भी —!”
”अरे मैं अपना घर अपने माँ -बाप सबको छोडकर आई हूँ और आपने पहली ही रात को ”अँगूठी छोटी है ,चैन छोटी है ” कहकर मुझे सुनाना शुरू कर दिया बारात की खातिरदारी अच्छी नहीं हुई !”
”ऐसे तो लड़के बाले कहते ही हैं !” बेशर्मी से कहता हुआ नितिन बाहर निकल गया ।कमरे में स्नेहा अवाक सी रह गयी पति की ऐसी बात सुनकर ।प्रतीक की बातों से लग रहा था , मानो लड़की बालों को ताना देना लड़के बालों का जन्म सिद्ध अधिकार हो ।लेखिका —–राशि सिंह
- Yah Hindi laghu katha aapko kaisi lagi hmein jarur btayein aur agar aapne bhi koi laghu katha likhi hai, to hmein jarur bhejein.
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