समुद्र मंथन की कहानी – Samudra Manthan Story in Hindi Font :

Samudra Manthan Story in Hindi – समुद्र मंथन की कहानी
Samudra Manthan Story in Hindi

समुद्र मंथन की कहानी – Samudra Manthan Story in Hindi Font :

  • एक बार महर्षि दुर्वासा वैकुंठ से आ रहे थे. रास्ते में उन्होंने ऐरावत हाथी पर बैठे भगवान इन्द्र को कमल के फूल की माला भेंट की. लेकिन अहंकार में डूबे इन्द्र ने वह माला ऐरावत के सिर पर फेंक दी. ऐरावत ने माला को पैरों से कुचल दिया.
    इससे दुर्वासा ऋषि क्रोधित हो गए, और इन्द्र को श्रीहीन होने का शाप दिया. इस शाप के कारण इंद्र ने स्वर्ग का राज्य खो दिया. राक्षसों ने स्वर्ग पर कब्जा कर लिया.
    स्वर्ग का राज्य फिर से पाने के लिए भगवान विष्णु ने इंद्र को समुद्र मंथन करने और उससे निकलने वाले अमृत को देवताओं को पिलाने के लिए कहा. यह काम केवल देवता नहीं कर सकते थे, इसलिए इंद्र ने राक्षस राजा बलि को समुद्रमंथन करने के लिए राजी किया.
    समुद्र मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को मथनी और नागराज वासुकी को रस्सी बनाया गया. विष्णु भगवान ने कच्छप अवतार लेकर मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर उठाये रखा.
    देव-दानवों ने समुद्रमंथन किया तो, समुद्रमंथन से 14 रत्न निकले.
  • 1. विष – समुद्र मंथन में सबसे पहले भयानक जहर निकला. विष निकलने से देवताओं और दानवों में अफरा-तफरी मच गई. इस विष को लेने के लिए न तो देवता तैयार हुए और न दानव. तब भगवान शिव ने इस विष को पी लिया और तभी से भगवान शिव का नाम नीलकंठ पड़ गया.
    2. कामधेनु – समुद्रमंथन से कामधेनु गाय निकली, यह एक चमत्कारी गाय है, जिसमें दैवीय शक्तियाँ है और जिसके देखने मात्र से लोगों के दुःख दूर हो जाती हैं. यह गाय जिसके पास होती थी, उसे किसी तरह की तकलीफ नहीं होती थी. इस गाय का दूध अमृत के समान माना जाता था.
    3. उच्चै:श्रवा घोड़ा – समुद्रमंथन से उच्चै:श्रवा नाम का घोड़ा प्रकट हुआ. यह सफेद, चमकीला, मजबूत कद-काठी का दिव्य घोड़ा था. इसे दैत्यराज बलि ने ले लिया.
    4. ऐरावत हाथी – समुद्रमंथन से 4 दांतों वाला हाथी ऐरावत प्रकट हुआ, इसके दिव्य रूप के आगे कैलाश पर्वत भी फीका लगता है. ऐरावत के साथ 64 और सफेद हाथी समुद्र मंथन से निकले. ऐरावत को इंद्र ने पाया. ऐरावत, पैनी नजर और गहरी सोच का प्रतीक है. 5. माँ लक्ष्मी – समुद्र मंथन से माँ लक्ष्मी निकलीं. माँ लक्ष्मी के तेज और सौंदर्य ने सभी को आकर्षित किया. माँ लक्ष्मी को मनाने के लिए सभी प्रयत्न करने लगे. माँ लक्ष्मी ऋषियों के पास गई, ज्ञानी और तपस्वी होने के बावजूद वे क्रोधी भी थे, इसलिए माँ लक्ष्मी ने उन्हें नहीं चुना. इसी तरह देवताओं को महान होने पर भी कामी, मार्कण्डेयजी को चिरायु होने पर भी तप में लीन रहने, परशुराम जी को जितेन्द्रिय होने पर भी कठोर होने की वजह से नहीं चुना. अंत में माँ लक्ष्मी ने शांत, सात्विक, सारी शक्तियों के स्वामी और कोमल हृदय वाले भगवान विष्णु को चुना.
  • 6. अप्सराएं – समुद्र मंथन से कई सुंदर अप्सराएँ निकली. जो किसी को भी मोहित करने में सक्षम थीं. अप्सराएँ देवताओं को प्राप्त हुई.
    7. चन्द्रमा – समुद्र मंथन से संपूर्ण कलाओं के साथ चन्द्रमा भी प्रकट हुए.
    8. वारुणी ( मदिरा )- सुन्दर आंखों वाली कन्या के रूप में वारुणी देवी प्रकट हुई, जो दैत्यों को मिली.
    9. शंख – समुद्र मंथन से शंख भी निकला. शंख को बहुत हीं शुभ माना जाता है, और शंख हर हिन्दू के पूजा घर में रहता हीं है. मंथन से उत्पन्न होने के कारण इसे माँ लक्ष्मी का भाई भी कहते हैं.
    10. पारिजात वृक्ष- समुद्र मंथन से पारिजात नामक वृक्ष निकला. इस वृक्ष की खासियत यह है कि इसे छूने से हीं थकान मिट जाती है. हनुमान जी का वास भी इस वृक्ष में माना गया है.
    11. कौस्तुभ मणि – समुद्र मंथन से सभी रत्नों में श्रेष्ठ कौस्तुभ मणि निकला. इसकी चमक तीनों लोकों को प्रकाशित करने की क्षमता रखती थी.
  • 12. कल्पवृक्ष – समुद्र मंथन से कल्पवृक्ष निकला. मान्यता है कि कल्पवृक्ष स्वर्ग में मौजूद है, इस पेड़ की खासियत यह है कि मांगने वाले के मन की हर इच्छा यह पूरी कर देता है.
    13. / 14. धनवन्तरि और अमृत – समुद्रमंथन से आयुर्वेद के प्रवर्तक भगवान धनवन्तरि हाथ में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए. राक्षसों की नजर अमृत पर पड़ी, उन्होंने वह कलश धनवन्तरि से छीन लिया. अमृत के लिए देव-दानवों में लड़ाई होने लगी. तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किय़ा. मोहिनी ने अमृत देवताओं को पिला दिया. लेकिन राहु नाम के राक्षस ने भी थोड़ा अमृत पी लिया. लेकिन अमृत के राहु के कंठ से नीचे उतरने से पहले हीं  भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उसका गला काट दिया. फिर भी अमृत के असर से उसका सिर अमर होने के कारण भगवान  ब्रह्मा ने उसे ग्रह के रूप में मान्यता दे दिया. इसके बाद अमृत से वंचित दैत्यों के देवताओं पर हमला करने से देवासुर संग्राम हुआ. भगवान विष्णु के मोहिनी के रूप से भगवान शिव भी मोहित हो गए थे.

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