बसंत ऋतु पर कविताएँ || Small Poem On Basant Ritu Hindi language spring :

Small Poem On Basant Ritu Hindi – बसंत ऋतु पर कविताएँ बसंत ऋतु पर कविताएँ - Small Poem On Basant Ritu Hindi Language

बसंत ऋतु पर कविताएँ – Small Poem On Basant Ritu Hindi Language

  • आई बसंत

    हर जुबा पे है छाई ये कहानी।
    आई बसंत की ये ऋतू मस्तानी।।
    दिल को छू जाये मस्त झोका पवन का।
    मीठी धूप में निखर जाए रंग बदन का।।
    गाये बुजुर्गो की टोली जुबानी।
    आई बसंत की ये ऋतू मस्तानी।।
    झूमें पंछी कोयल गाये।
    सूरज की किरणे हँसती जमी नहलाये।।
    लागे दोनों पहर की समां रूहानी।
    आई बसंत की ये ऋतू मस्तानी।।
    टिमटिमायें ख़ुशी से रातों में तारे।
    पिली फसलों को नहलाये दूधिया उजाले।।
    गाते जाए सब डगर पुरानी।
    आई बसंत की ये ऋतू मस्तानी।।
    – उत्पल पाठक

  • आ गया बसंत

    आ गया बसंत है, छा गया बसंत है
    खेल रही गौरैया सरसों की बाल से
    मधुमाती गन्ध उठी अमवा की डाल से
    अमृतरस घोल रही झुरमुट से बोल रही
    बोल रही कोयलिया sss
    आ गया बसंत है, छा गया बसंत है 
    नया-नया रंग लिए आ गया मधुमास है
    आंखों से दूर है जो वह दिल के पास है 
    फिर से जमुना तट पर कुंज में पनघट पर 
    खेल रहा छलिया sss
    आ गया बसंत है छा गया बसंत है
    मस्ती का रंग भरा मौज भरा मौसम है
    फूलों की दुनिया है गीतों का आलम है
    आंखों में प्यार भरे स्नेहिल उदगार लिए
    राधा की मचल रही पायलिया sss
    आ गया बसन्त है छा गया बसंन्त है
    – कंचन पाण्डेय ( मिर्जापुर उत्तर प्रदेश )

  • e basant

    har juba pe hai chhaee ye kahaanee.
    aaee basant kee ye rtoo mastaanee..
    dil ko chhoo jaaye mast jhoka pavan ka.
    meethee dhoop mein nikhar jae rang badan ka..
    gaaye bujurgo kee tolee jubaanee.
    aaee basant kee ye rtoo mastaanee..
    jhoomen panchhee koyal gaaye.
    sooraj kee kirane hansatee jamee nahalaaye..
    laage donon pahar kee samaan roohaanee.
    aaee basant kee ye rtoo mastaanee..
    timatimaayen khushee se raaton mein taare.
    pilee phasalon ko nahalaaye doodhiya ujaale..
    gaate jae sab dagar puraanee.
    aaee basant kee ye rtoo mastaanee..
    – utpal paathak

  • ऋतुराज बसंत

    पाहुन का संदेशा लेकर,
    वसंत दूती ज्यों आयी ।
    धरा निलय का हुआ रमणीय,
    चहुँ ओर कालीकाएँ छायी। ।
    मद्धम मद्धम बयार चले,
    कभी सुरभित समीर के झोंके।
    नव स्वर में कोकिला बोले,
    गुन गुन करते भौंरे । ।
    धरा ने ओढ़ा पीत वसन ,
    तरूओं ने डाले नव पल्लव।
    वल्लरी से निपटा कुसुम कानन,
    अलग रंग में नील गगन। ।
    आगमन किस पाहुन से,
    नवोत्कर्ष है छाया।
    हर्षोल्लास के साथ ये,
    ऋतु राज वसंत है आया । ।
    — संतोषी देवी —

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