संस्कारवान ( एक कहानी ) – Story in Hindi Font With Moral :

Story in Hindi With Moral
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Story in Hindi Font With Moral

  • मैं ट्रेन की जनरल बोगी में बैठा हुआ था. बाहर काफी भीड़ थी, तभी मैंने अपनी बोगी में एक औरत को खड़ा देखा… उसके हाथ में एक छोटा बच्चा था और उसका दूसरा बेटा उसका हाथ पकड़कर खड़ा था. उस औरत के हाथ में जो बच्चा था वो तकरीबन एक या डेढ़ साल का था और जो नीचे खड़ा था, वो तीन या चार साल का था. मुझे उस औरत पर दया आ गई, मैंने उसे बैठने के लिए थोड़ी जगह दे दी. मैंने देखा कि वो औरत काफी थकी हुई थी, तो मैंने उसके छोटे बेटे को गोद में ले लिया… उसने मुझे धन्यवाद कहा. मैं सोच रहा था कि इसके पति और घर वालों ने ये जानते हुए भी इसे अकेला भेज दिया कि इसके दो छोटे-छोटे बच्चे हैं. मुझे उन पर काफी गुस्सा आ रहा था.
  • मैंने उस औरत से पूछा बहन जी आप कहाँ की रहने वाली हो ? “ बिहार “, उस औरत ने जवाब दिया. तो शायद आप अपने ससुराल जा रही हो ? मैंने उनसे एक और सवाल किया. उसने हाँ में सर हिलाया. मैंने सोचा कि क्या यार इसके माँ-बाप ने इसे अकेले हीं भेज दिया, यह जानकर भी कि इसके दो छोटे-छोटे बच्चे हैं. मैंने उस औरत से पूछा कि उनके पति उनके साथ क्यों नहीं आए ? उस औरत की आँखों में आंसू आ गए, मैं समझा कि शायद उनके पति नहीं है फिर मेरी नज़र उस औरत की मांग में भरे सिंदूर पर पड़ी. फिर मैंने उस औरत से न चाहते हुए भी ये सवाल किया कि क्या हुआ आपके पति को, क्या उनका कोई एक्ससिडेंट वगैरह हो गया है क्या ? या तबियत ज्यादा ख़राब है ? उस औरत ने न में सिर हिलाया और अपनी आपबीती सुनाई.
  • उसने बताया कि उसका पति उसे रोज़ मारता-पीटता है और खाना भी टाइम से नहीं देता. उसके सास-ससुर भी उसपर काफी जुल्म करते हैं. मुझे ये सुनकर गुस्सा आया और मैंने कहा कि तुम्हारे मम्मी-पापा कुछ नहीं करते. तो उसने जवाब दिया कि मैं बहुत गरीब माँ-बाप की बेटी हूँ. वैसे मेरे दादा जी बहुत अमीर थे. दादा जी की जितनी भी पूंजी थी, वो मेरे पापा के इलाज में लग गई. मेरे ससुराल वालों ने सोचा कि जब इसके दादा के पास इतना माल था, तो थोड़ा बहुत अपनी पोती के लिए भी छोड़ गए होंगे. और उन्होंने दहेज़ के लालच में मुझसे शादी कर ली. और जब शादी के बाद पता चला कि हमारे पास कुछ नहीं है, तो मुझे घर से निकाल दिया. मैंने लाख मिन्नत की.. कि मुझे इसी घर में रहने दो, मैं नौकरानी बनकर जी लूंगी. मेरे बूढ़े माँ-बाप मेरा बोझ नहीं उठा पाएंगे और मेरा एक ही तो भाई है, वो मेरे लिए कमाएगा या अपने घरवालों के लिये. मैंने लाख मिन्नतें की तब जाकर उन्होंने मुझे घर में रखा, मैं होली के त्यौहार पर अपने घर आई थी. अब जा रही हूँ.
  • मुझे बहुत गुस्सा आया पर मैं कर भी क्या सकता था. मैंने उस औरत को चुप कराया और वहीं सामने खाली हुई जगह पर बैठ गया. मैंने उस औरत से क़ानूनी कार्यवाही करने को बोली, पर उसने मना कर दिया. उसने कहा कि उसके माँ-बाप ये सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे. मैंने कहा ठीक है.
  • फिर मैं उसके बड़े बेटे से बात करने लगा कि वो कितनी क्लास में है और दिन भर क्या करता है वगैरह-वगैरह… ऐसे हीं बात चल रही थी. हमारा बिहार से छः घंटे का सफर था और हम दोनों के प्लेटफॉर्म आसपास हीं थे बस उस औरत को पहले उतरना था और मुझे बाद में उस औरत का स्टेशन पास हीं था. लगभग आधा घंटे का और सफर था.
  • यू हीं  बात चलती ही जा रही थी, फिर मैंने उस औरत के बड़े लड़के से एक सवाल किया कि वो बड़ा होकर क्या बनेगा? तो उस बच्चे के जवाब ने मुझे रुला दिया, उसने बड़ी ही मासूमियत से जवाब दिया कि वो बड़ा होकर अपनी माँ के बुढ़ापे की लाठी बनेगा. उस बच्चे ने बड़ी ही मासूमियत से इतनी बड़ी बात कह दी, मैंने उस बच्चे को गले लगा लिया. वो बच्चा मुस्कुरा रहा था उसके चहरे पर एक अनोखा तेज़ था मानो जैसे तेज़ गर्मी के बाद सावन के लहराते बादल, मैं समझ नहीं पा रहा था कि अब उससे क्या पूछूं… उसने मेरे पहले ही सवाल का इतना सुन्दर जबाब दिया कि मेरे पास कोई सवाल पूछने को बचा हीं नहीं, उस बच्चे के चहरे पर सच्चाई झलक रही थी.
  • मैंने उसकी माँ से पूछा कि उसे इतनी अच्छी-अच्छी बातें कौन सिखाता है? तो उसकी माँ ने जबाब दिया कि, यह दिनभर अपने नाना जी के पास रहता है. वही बताते रहते हैं इसे ज्ञान ध्यान की बातें. मेरी आँख भीग गई. तो उस औरत ने मुझसे पूछा क्या हुआ मैंने कहा, कुछ नहीं, फिर वो औरत बोली हमारा स्टेशन आ गया फिर मैंने उस औरत की ट्रेन से उतरने में मदद की. उसके बड़े लड़के ने मुझे बाय बोला और कहा कि अंकल कभी घर आना, मैंने हाँ में सिर हिलाया और उसको बाय बोला ट्रेन चल चुकी थी अब अगला हीं स्टेशन पर मुझे भी उतरना था मैं अपनी सीट पर आकर बैठ गया, मुझे बार-बार उस बच्चे की कही बात याद आ रही थी की वो बच्चा इतनी सी उम्र में इतनी बड़ी सच्चाई बोल गया.- आकाश सक्सेना

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