संस्कृत – हिंदी सूक्तियाँ अर्थ सहित || Suktiyan in Sanskrit With Hindi

संस्कृत – हिंदी सूक्तियाँ अर्थ सहित || Suktiyan in Sanskrit With Hindi

संस्कृत – हिंदी सूक्तियाँ अर्थ सहित || Suktiyan in Sanskrit With Hindi

संस्कृत – हिंदी सूक्तियाँ अर्थ सहित || Suktiyan in Sanskrit With Hindi

  • Sharir Par Suktiyan
  • कायः कस्य न वल्लभः ।
    अपना शरीर किसको प्रिय नहीं है ?
  • शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् ।
    शरीर धर्म पालन का पहला साधन है ।
  • त्रयः उपस्तम्भाः ।
    आहारः स्वप्नो ब्रह्मचर्यं च सति ।
    शरीररुपी मकान को धारण करनेवाले तीन स्तंभ हैं; आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य (गृहस्थाश्रम में सम्यक् कामभोग) ।
  • सर्वार्थसम्भवो देहः ।
    देह् सभी अर्थ की प्राप्र्ति का साधन है ।
  • Vridhon Par Suktiyan
  • श्रोतव्यं खलु वृध्दानामिति शास्त्रनिदर्शनम् ।
    वृद्धों की बात सुननी चाहिए एसा शास्त्रों का कथन है ।
  • वृध्दा न ते ये न वदन्ति धर्मम् ।
    जो धर्म की बात नहीं करते वे वृद्ध नहीं हैं
  • न तेनवृध्दो भवति येनाऽस्य पलितं शिरः ।
    बाल श्वेत होने से हि मानव वृद्ध नहीं कहलाता ।
  • Business par Suktiyan
  • सत्यानृतं तु वाणिज्यम् ।
    सच और जूठ एसे दो प्रकार के वाणिज्य हैं ।
  • वाणिज्ये वसते लक्ष्मीः ।
    वाणिज्य में लक्ष्मी निवास करती है ।
  • Vaani Par Suktiyan
  • अभ्यावहति कल्याणं विविधं वाक् सुभाषिता ।
    अच्छी तरह बोली गई वाणी अलग अलग प्रकार से मानव का कल्याण करती है ।
  • वाक्शल्यस्तु न निर्हर्तु शक्यो ह्रदिशयो हि सः ।
    दुर्वचन रुपी बाण को बाहर नहीं निकाल सकते क्यों कि वह ह्रदय में घुस गया होता है ।
  • वाण्येका समलंकरोति पुरुषं या संस्कृता धार्यते ।
    संस्कृत अर्थात् संस्कारयुक्त वाणी हि मानव को सुशोभित करती है ।
  • वाक्संयमी हि सुदुसःकरतमो मतः ।
    वाणी पर संयम रखना अत्यंत कठिन है ।
  • Vastra – Clothes Par Suktiyan
  • कुवस्त्रता शुभ्रतया विराजते ।
    खराब वस्त्र भी स्वच्छ हो तो अच्छा दिखता है ।
  • जिता सभा वस्त्रवता ।
    अच्छे वस्त्र पहननेवाले सभा जित लेते हैं (उन्हें सभा में मानपूर्वक बिठाया जाता है) ।
  • वस्त्रेण किं स्यादिति नैव वाच्यम् ।
    वस्त्रं सभायामुपकारहेतुः ॥
    अच्छे या बुरे वस्त्र से क्या फ़र्क पडता है एसा न बोलो, क्योंकि सभा में तो वस्त्र बहुत उपयोगी बनता है !
  • Lalach Par Suktiyan
  • क्लिश्यन्ते लोभमोहिताः ।
    लोभ की वजह से मोहित हुए हैं वे दुःखी होते हैं ।
  • लोभः प्रज्ञानमाहन्ति ।
    लोभ विवेक का नाश करता है ।
  • लोभमूलानि पापानि ।
    सभी पाप का मूल लोभ है ।
  • लोभात् प्रमादात् विश्रम्भात् त्रिभिर्नाशो भवेन्नृणाम् ।
    लोभ, प्रमाद और विश्र्वास – इन तीन कारणों से मनुष्य का नाश होता है ।
  • लोभ
    लोभं हित्वा सुखी भलेत् ।
    लोभका त्याग करने से मानवी सुखी होता है ।
  • अन्तो नास्ति पिपासायाः ।
    तृष्णा का अन्त नहीं है ।
  • Rup Par Suktiyan – slokas on Rup
  • रूपेण किं गुणपराक्रमवर्जितेन ।
    जिस रूप में गुण या पराक्रम न हो उस रूप का क्या उपयोग ?
  • मृजया रक्ष्यते रूपम् ।
    स्वच्छता से रूप की रक्षा होती है
  • कुरूपता शीलयुता विराजते ।
    कुरुप व्यक्ति भी शीलवान हो तो शोभारुप बनती है
  • तद् रूपं यत्र गुणाः ।
    जिस रुप में गुण है वही उत्तम रुप है ।
  • Ruchi Par Sukti
  • भिन्नरूचि र्हि लोकः ।
    मानव अलग अलग रूचि के होते हैं ।
  • Rikt Par Sukti
  • रिक्तः सर्वो भवति हि लघुः पूर्णता गौरवाय ।
    चीज खाली होने से हल्की बन जाती है; गौरव तो पूर्णता से हि मलता है ।
  • Raja / Leader Par Suktiyan
  • लोकरझ्जनमेवात्र राज्ञां धर्मः सनातनः ।
    प्रजा को सुखी रखना यही राजा का सनातन धर्म है ।
  • राजा कालस्य कारणम् ।
    राजा काल का कारण है ।
  • Yogyta Par Suktiyan
  • श्रध्दा ज्ञानं ददाति ।
    नम्रता मानं ददाति ।
    (किन्तु) योग्यता स्थानं ददाति ।
    श्रद्धा ज्ञान देती है, नम्रता मान देती है और योग्यता स्थान देती है ।
  • Yachak Pe Suktiyan – Rin Par Sukti
  • तृणाल्लघुतरं तूलं तूलादपि च याचकः ।
    तिन्के से रुई हलका है, और याचक रुई से भी हलका है ।
  • लुब्धानां याचको रिपुः ।
    लोभी मानव को याचक शत्रु जैसा लगता है ।
  • याचको याचकं दृष्टा श्र्वानवद् घुर्घुरायते ।
    याचक को देखकर याचक, कुत्ते की तरह घुर्राता है ।
  • Yash Par Suktiyan
  • यशोवधः प्राणवधात् गरीयान् ।
    यशोवध प्राणवध से भी बडा है ।
  • यशोधनानां हि यशो गरीयः ।
    यशरूपी धनवाले को यश हि सबसे महान वस्तु है ।
  • Moun Par Suktiyan – Slokas on Silence
  • वरं मौनं कार्यं न च वचनमुक्तं यदनृतम् ।
    असत्य वचन बोलने से मौन धारण करना अच्छा है ।
  • मौनिनः कलहो नास्ति ।
    मौनी मानव का किसी से भी कलह नहीं होता ।
  • मौनं सर्वार्थसाधनम् ।
    मौन यह सर्व कार्य का साधक है ।
  • विभूषणं मौनमपण्डितानाम् ।
    मूर्ख लोगों का मौन आभूषण है ।
  • मौनं सम्मतिलक्षणम् ।
    मौन सम्मति का लक्षण है ।
  • Shastra Par Suktiyan
  • सर्वस्य लोचनं शास्त्रम् ।
    शास्त्र सबकी आँख है ।
  • Swabhaw Par Suktiyan – Poem on Nature
  • अतीत्य हि गुणान् सर्वान् स्वभावो मूर्ध्नि वर्तते ।
    सब गुण के उस पार जानेवाला “स्वभाव” हि श्रेष्ठ है (अर्थात् गुण सहज हो जाना चाहिए) ।
  • न खलु वयः तेजसो हेतुः ।
    वय तेजस्विता का कारण नहीं है ।
  • महीयांसः प्रकृत्या मितभाषिणः ।
    बडे लोग स्वभाव से हि मितभाषी होते हैं ।
  • Subhashit Par Suktiyan – Slokas
  • नूनं सुभाषितरसोऽन्यरसातिशायी ।
    सचमुच ! सुभाषित रस बाकी सब रस से बढकर है ।
  • युक्तियुक्तमुपादेयं वचनं बालकादपि ।
    युक्तियुक्त वचन बालक के पास से भी ग्रहण करना चाहिए ।
  • पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम् ।
    इस पृथ्वी पर तीन रत्न हैं; जल, अन्न और सुभाषित ।
  • Saksharta Par Suktiyan
  • साक्षरा विपरीताश्र्चेत् राक्षसा एव केवलम् ।
    साक्षर अगर विपरीत बने तो राक्षस बनता है ।
  • Sheel Par Shuktiyan – slokas on politeness
  • कुरूपता शीलतया विराजते ।
    कुरूप व्यक्ति भी शीलवान हो तो सुंदर लगती है ।
  • कुलं शीलेन रक्ष्यते ।
    शील से कुल की रक्षा होती है
  • शीलं भूषयते कुलम् ।
    शील कुल को विभूषित करता है
  • Vakta Par Sukti
  • किं करिष्यन्ति वक्तारो श्रोता यत्र न बुध्द्यते ।
    जहाँ श्रोता समजदार नहीं है वहाँ वक्ता (भाषण देकर) भी क्या करेगा ?
  • अप्रियस्य च पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः ।
    अप्रिय हितकर वचन बोलनेवाला और सुननेवाला दुर्लभ है
  • Mitra Par Suktiyan – Slokas on Friend
  • मृजया रक्ष्यते रूपम् ।
    शृंगार से रुप की रक्षा होती है ।
  • सर्वे मित्राणि समृध्दिकाले ।
    समृद्धि काल में सब मित्र बनते हैं ।
  • आपदि मित्र परीक्षा ।
    आपत्ति में मित्र की परीक्षा होती है ।
  • Mata Par Suktiyan – Slokas on Mother
  • न मातुः परदैवतम् ।
    माँ से बढकर कोई देव नहीं है
  • कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ।
    पुत्र कुपुत्र होता है लेकिन माता कभी कुमाता नहीं होती ।
  • गुरुणामेव सर्वेषां माता गुरुतरा स्मृता ।
    सब गुरु में माता को सर्वश्रेष्ठ गुरु माना गया है
  • Man Par Suktiyan
  • मनसि व्याकुले चक्षुः पश्यन्नपि न पश्यति ।
    मन व्याकुल हो तब आँख देखने के बावजूद देख नहीं सकती ।
  • मनः शीघ्रतरं बातात् ।
    मन वायु से भी अधिक गतिशील है
  • मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः ।
    मन हि मानव के बंधन और मोक्ष का कारण है ।
  • Bhojan Par Suktiyan – Slokas on Food
  • भोजनस्यादरो रसः ।
    भोजन का रस “आदर” है ।
  • विना गोरसं को रसो भोजनानाम् ।
    बिना गोरस भोजन का स्वाद कहाँ ?
  • कुभोज्येन दिनं नष्टम् ।
    बुरे भोजन से पूरा दिन बिगडता है ।
  • अजीर्णे भोजनं विषम् ।
    अपाचन हुआ हो तब भोजन विष समान है ।
  • वपुराख्याति भोजनम् ।
    मानव कैसा भोजन लेता है उसका ध्यान उसके शरीर पर से आता है ।
  • कदन्नता चोष्णतया विराजते ।
    खराब (बुरा) अन्न भी गर्म हो तब अच्छा लगता है ।
  • Noukar Par Suktiyan – Slokas on Servents
  • स्वस्वामिना बलवता भृत्यो भवति गर्वितः ।
    जिस भृत्य का स्वामी बलवान है वह भृत्य गर्विष्ट बनता है ।
  • शुचिर्दक्षोऽनुरक्तश्र्च भृत्यः खलु सुदुर्लभः ।
    इमानदार, दक्ष और अनुरागी भृत्य (सेवक) दुर्लभ होते हैं ।
  • Bharya Patni Wife Par Suktiyan – Slokas
  • भार्या मित्रं गृहेषु च ।
    गृहस्थ के लिए उसकी पत्नी उसका मित्र है ।
  • भार्या दैवकृतः सखा ।
    भार्या दैव से किया हुआ साथी है ।
  • नास्ति भार्यासमं किज्चिन्नरस्यार्तस्य भेषजम् ।
    आर्त (दुःखी) मानव के लिए भार्या समान कोई ओसड नहीं है ।
  • नास्ति भार्यासमो बन्धु नास्ति भार्यासमा गतिः ।
    भार्या समान कोई बन्धु नहीं है, भार्या समान कोई गति नहीं है ।
  • Bhagya Par Suktiyan – Slokas on Luck
  • चक्रारपंक्तिरिव गच्छति भाग्यपंक्तिः ।
    चक्र के आरे की तरह भाग्यकी पंक्ति उपर-नीचे हो सकती है
  • यद् धात्रा लिखितं ललाटफ़लके तन्मार्जितुं कः क्षमः ।
    विधाता ने जो ललाट पर लिखा है उसे कौन मिथ्या कर सकता है ?
  • भाग्यं फ़लति सर्वत्र न विद्या न च पौरुषम् ।
    भाग्य हि फ़ल देता है, विद्या या पौरुष नहीं ।
  • चराति चरतो भगः ।
    चलेनेवाले का भाग्य चलता है ।
  • Future Par Suktiyan
  • सहायास्तादृशा एव यादृशी भवितव्यता ।
    जैसी भवितव्यता हो एसे हि सहायक मिल जाते हैं
  • यदभावि न तदभावी भावि चेन्न तदन्यथा ।
    जो नहीं होना है वो नहीं होगा, जो होना है उसे कोई टाल नहीं सकता
  • Bhay Par Suktiyan
  • भये सर्वे हि बिभ्यति ।
    भय का कारण उपस्थिति हो तब सब भयभीत होते हैं ।
  • द्वितीयाद्वै भयं भवति ।
    दूसरा हो वहाँ भय उत्पन्न होता है ।
  • न बन्धुमध्ये धनहीनजीवनम् ।
    बन्धुओं के बीच धनहीन जीवन अच्छा नहीं ।
  • Strength Par Sukti
  • अहो दुरन्ता बलवद्विरोधिता ।
    बलवान के साथ विरोध करनेका परिणाम दुःखदायी होता है ।
  • बलवन्तो हि अनियमाः नियमा दुर्बलीयसाम् ।
    बलवान को कोई नियम नहीं होते, नियम तो दुर्बल को होते हैं ।
  • प्रयोजनमनुद्रिश्य न मन्दोऽपि प्रवर्तते ।
    मूढ मानव भी बिना प्रयोजन कोई काम नहीं करता ।
  • स्वभावो दुरतिक्रमः ।
    स्वभाव बदलना मुश्किल है ।
  • Prithvi Earth Par Suktiyan
  • बह्वाश्र्चर्या हि मेदनी ।
    पृथ्वी अनेक आश्र्चर्यों से भरी हुई है ।
  • वीरभोग्या वसुन्धरा ।
    पृथ्वी का उपभोग वीर पुरुष हि कर सकते है ।
  • बहुरत्ना वसुन्धरा ।
    पृथ्वी काफ़ी रत्नों से भरी हुई है ।
  • अयोग्यः पुरुषः नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभः ।
    कोई भी पुरुष अयोग्य नहीं, पर उसे योग्य काम में जोडनेवाला पुरुष दुर्लभ है
  • Pita Father Par Sukti
  • ऋणकर्ता पिता शत्रुः ।
    ऋण करनेवाला पिता शत्रु है
  • पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवताः ।
    पिता प्रसन्न हो तो सब देव प्रसन्न होते हैं
  • पितु र्हि वचनं कुर्वन् न कश्र्चिन्नाम हीयते ।
    पिता के वचन का पालन करनेवाला दीन-हीन नहीं होता ।
  • पात्रत्वाद् धनमाप्नोति ।
    पात्रता होने से इन्सान धन प्राप्त करता है ।

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